"Duaayen bahut see dee.n sabane magar
asar hone main hi zamaane lage."

Friday, October 29, 2010

KYA ZINDGI KE ISHARE HUE

ये ज़िन्दगी के क्या इशारे हुए, 
जो ज़ख्म फिर हरे हमारे हुए. 

सफ़र ए हस्ती दोबारा कैसे करें, 
हैं पैरहन दो ही उतारे हुए. 

जब भी घेरा हमें तूफ़ानों ने, 
जो यार थे सभी किनारे हुए. 

ग़िला किससे अब तुम्हारा करें, 
अब खुदा भी यहां तुम्हारे हुए. 

सबसे चेहरा हैं वो छिपाए फ़िरें, 
ज़िन्दगी से ही जो हैं हारे हुए. 

जैसे तैसे सफ़र ये कट ही गया, 
टूटे अरमानों से गुज़ारे हुए. 

ग़मज़दा सब मगर न मरता कोई, 
मर के ही ग़म जुदा ये सारे हुए. 

उनको कहते सुना रकीब से ये, 
हैं "अनाड़ी" ग़मों के मारे हुए.




ye zindagii ke kyaa ishaare hue, 
jo zakhm phir hare hamaare hue. 

safar e hastii dobaaraa kaise 
kare.n, hai.n pairahan do hii utaare hue. 

jab bhii gheraa hame.n toofaano.n ne, 
jo yaar the sabhii kinaare hue. 

Gilaa kisase ab tumhaaraa kare.n, 
ab khudaa bhii yahaa.n tumhaare hue. 

sabase cheharaa hai.n wo Chipaae fire.n, 
zindagii se hii jo hai.n haare hue. 

aise taise safar ye kaT hii gayaa, 
TooTe aramaano.n se guzaare hue. 

Gamazadaa sab magar n marataa koii, 
mar ke hii Gam judaa ye saare hue. 

unako kahate sunaa rakeeb se ye,
hai.n "anaa.Dii" Gamo.n ke maare hue. 

"Anaarhi" 3rd NOV.2010 

Wednesday, October 27, 2010

Zindgi

दूर मुझको बहारों से क्युं ला रही है ज़िन्दगी, 
किनारों से तूफ़ानों में ले जा रही है ज़िन्दगी. 

चलते चलते ये राहें इस कदर उलझ गईं, 
जंगल में कभी सेहरा में - चलवा रही है ज़िन्दगी. 

हाले दिल जो एक दिन पूछ बैठे चांद से, 
कहा उसने के चक्कर ज़मीं के - लगवा रही है ज़िन्दगी. 

आफ़ताब से कहा एक दिन तू भी अपनी कुछ सुना, 
बोला न जाने किस आग में- जला रही है ज़िन्दगी. 

सितारों ने रो रो के अपनी दासतां ये सुनाई, 
खिलवाड़ रोशनी से रोज़ - करवा रही है ज़िन्दगी 

ज़िन्दगी से अपनी कोई "अनाड़ी" ख़ुश नहीं
देखो ये कैसे सब को - रुला रही है ज़िन्दगी. 

"अनाड़ी" 20th Sept. 2010, 1030 hrs

Gar tu na khaak hota

Kuch uupar wale se. kuch uuper walon se ............ 

गर तू जमीं पे रहता न अम्बर के पास मिलता, 
घर मेरा फ़िर तेरे ही घर के पास मिलता. 

जो नहीं खता थी मेरी उसकी सज़ा भी सह ली, 
गर गुनाहगार होता पैगम्बर के पास मिलता, 

चल रख पास अपने तू मेहरबानीयां अपनी, 
गर तलबगार होता तेरे दर के पास मिलता, 

जितना आसां था कहना थीं उतनी ही मुश्किल राहें, 
गर सफ़र आसान होता समंदर के पास मिलता. 

खुदा नहीं है इन्सां जो कदर ए इन्सां समझे, 
गर मैं फ़कीर होता किसी मुज़्तर के पास मिलता. 

बंट गया शरीकों में ताउम्र कमाया जो तूने गर 
नाम कमाया होता तेरी कब्र के पास मिलता. 

"अनाड़ी" ये समझ ले तू लेट के कब्र में, 
गर तू न खाक होता दुआ ए असर के पास मिलता 

"Anaarhi" 20th Oct.2010

Fakhr hai meri ja ko

Aadharsh khan se laye.n hum????????? 

मिले जो हमको पुरखों से उन अदबों की रवानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

लगती रही है दाव पर हर युग में द्रोपदी,  
भगवान को आना पड़ता है जब लाज बचानी है.
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है.

राम राज में अग्नि परीक्षा सीताओं की होती रही, 
रघुकुल रीत विश्वास की हमको वही चलानी है. 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

जंग की खातिर जब धोखा हर किसी को जायज़ है, 
बालियों से तो हमें भी अपनी जान बचानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

करते रहे हैं गदर नासमझ आजादी के वास्ते, 
राय बहादुरी हमवतनों की जां पर पानी है 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

भगत सिंह आजाद की बातें ना छेड़ो तो अच्छा है, 
जो गुल कुरबान हैं वतनों पर वो मरते भरी जवानी हैं, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

काट के अंग अंग बांटा भाइयों ने ही मां को, 
ये गांधीयों जिन्नाओं की ही मेहरबानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को- के वो हिन्दोस्तानी है. 

हो गये आज़ाद अब बसाते हैं शहर नये, 
ठेकेदारी बस अपने भाइयों को दिलानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

अब चोर उच्चके राज करेंगे लोकतंत्र की आड़ में, 
इक दादा की मूरत भी चौराहे पे लगानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

देवों की इस धरती पर कीमत सिफ़र इंसान की, 
करके नये फ़साद खड़े दंगो की आग जलानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

रुतबा पैसे से मिलता है तहजीब से पेट नहीं भरता, 
काम बहुत अभी करने है नकली दूध बनानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

दुर्योधन शकुनी ने जूये से हासिल तख्तो ताज किये, 
हैं आज के भ्रष्टाचारी क्या - ये तो भरते पानी हैं,
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

गुरु द्रोण की परंपरा तब से अब तक कायम है, 
एकलव्यों की गुरु दक्षिणा वही अंगूठा कुर्बानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है.

घर में भेदी था रावण के जयचंदो की भूमी है, 
फ़िजा ए तहज़ीब ए हिन्दोस्तां तो बहुत पुरानी है, 

"Anaarhi" 14 th Oct. 2010

Sunday, October 10, 2010

SARE BAZAAR KUCH NILAAM HUA

तू बता दे तेरा पता क्या है, 
कैसा दिखता है पहनता क्या है. 

हैं यहां पे क्यूं ये पैमाने, 
जो बताते नहीं ज़रा क्या है. 

यहां कैसे का कुछ सवाल नहीं, 
देखते सब हैं के मिला क्या है. 

तेरे चेहरे पे किसका चेहरा है, 
मेरे आस्तीं में ये छुपा क्या है. 

आज सर पे जो ताज रखता है, 
कल को देखेगा के हुआ क्या है. 

झूठ की इक दिवार रखता है, 
तेरे इमान में बचा क्या है. 

वो जमीं से फ़लक पे जा पहुंचा, 
मेरी नज़रों से ये गिरा क्या है. 

सरे बाज़ार कुछ निलाम हुआ, 
ये ना पूछो के ये बिका क्या है. 

सबको बस रोश्नी की है चाहत, 
जानता दिल ही है जला क्या है. 

जिनको मतलब नहीं ख्यालों से, 
क्या बताएं उन्हें कहा क्या है. 

दिले गुस्ताख है जुबां आतिश,
उस "अनाड़ी" का ये ब्यां क्या है.

US PAAR JA KE

रंगीनिया इधर की अगर हैं गुनाह उस पार जा के, 
सफरे दश्त को छोड़ो जी क्या करना है उस पार जा के. 

जैसी करनी वैसी भरनी तो रोज़ ए हश्र से डर कैसा, 
साकी वही पिला दे और जो पीना है उस पार जाके. 

इस आलम के आईने भी झूठे हैं इंसाँ की तरह, 
जालिम कितने स्याह दिल हैं देखना है उस पार जा के. 

उसके ज़ुल्म ओ सितम का मैं कह दूँगा इंसाफ़ हुआ, 
जुल्मी को मेरे कदमो पर गर आना है उस पार जा के, 

क्या हाले जाँ बताएँ हम इस तन को है आराम कहाँ, 
सफ़र यहाँ इक करना है इक करना है उस पार जा के. 

संग पे सर को पटके है बुतो पे झूठी तोहमत भी, 
शायद उस "अनाड़ी " को कुछ भरना है उस पार जा के.

Saturday, September 25, 2010

mitti ki aukaat

कौन कहां पर जा पहुंचे - ये खेल हैं सब हयात के,
सितारों का क्या वज़ूद अपना - हैं मोहताज़ अन्धेरी रात के.

गर्द भी वक्त की आंधी से - उफ़्क के रंग बदल देती,
हवाओं में उड़ते शौले हैं - दिखलाते रंग निशात के.

आतिशे खुर्शीद की शै पाकर - पानी भी चर्ख पे जा चड़ता,
जब गर्मी हद से बढ़ जाती - आ जाते दिन बरसात के.

जरा सी हवा के झौंके से - खाक सरों पर उड़ती है,
तलवों के नीचे रहती जो - हर दम सारी जमात के.

दुनिया ने वाह वाह कर के - शरारे अन्जुंम बन डाले,
फिर ठोकरें खाते फिरते हैं - वो टूटन पर ज़ज़्बात के,

इन्सां को खुदा बनाये- वक्त - बनाये रंक को राजा,
मिट्टी की औकात हवाले - बस हवा और आबे हयात के,

बिन डोर के ये पुतली - छम छम नाचे फिरती है,
नफ़स टूटे जूं हुबाब*"अनाड़ी" - फिर अफ़साने रह जाएं जात के

 * Jub saans bulbuley ki tareh tootegi

Wednesday, September 15, 2010

introduction to bazm-e-sukhan

perr -e- perwaaj haasil na the bus youn hi ek din
waqt ki aandhi ne patte ko falak dikha diya.

pakda di kalam rafeek ne ik khuloos se
lafzon ne khyalon ko moorat bana diya.

ahl-e -nazer ko diwaane main kuch dikha shayad
pakad ke bahn jo buzm -e- sukan main bitha diya.

hai salaahiyat koi na khaasiyat sukhan main
shatir tha her fun main "ANAARHI" bana diya.

Gunah

kise kabool hai muafi jab ker diya gunah
mauka mile to kai baar ker dunga yahi gunah

chal uth sham ho gai , chal maikhane ki aur,
ye zindgi haram hai jo kiya na koi gunah.

anaarhi der mat buto se tu zo pee shraab hai,
hota jo sanam koi , kya hota koi gunah.

Na der chahe saza se tu per yr hisaab to rukh,
Ke ker baitha hai aaj tak tu kaise kaise gunah.

Chorh baat kal raat ki, wo thi zra si baat,
Kiye kai is umr main tune usse bade gunah.

Mat soch tadbeer se dher daulat liye baitha houn,
Ye daulat hai saza unki, jo kiye hain tune gunah.

Chal ye bata kyuker huye, na koi bahana khoj,
Hota na jo Anaarhi tu , kya kerta koi gunah?

Mil gai dil ko wzeh itraane ki

Sukha sukha sa tha ye man mere
Parhi uspe fuhaar sawan ki.

Aa gai le ke ik bahaar nai,
Aa gai khaber jo unke aane ki.

Socha tha is baar kuch na bolenge,
Rukegi kaise magar ye juban diwane ki.

Hai naazneen wo naaz gehna uska,
Hud hai kya , jra bata satane ki.

Yun na man se laga , ye hai arz meri,
Jo thi taqraar wo thi bahaane ki.

Aa gaye jo der pe to zra thehro,
Main nazer utaar loon zamaane ki.

Her ik shai hui rangin mere gher ki,
 Khuli kismat mere greeb khane ki.

Ker to dun door main sabhi shikwe,
Ger wo zid na Karen manane ki.

Ankho ankho mai ho gai baten,
Bachi na koi baat ab batane ki.

Ab na shikwa koi shikayat tujze,
Mil gai dil ko wzeh itraane ki

nahin torhta ab kaliyan

uski bajm main ye kaisa mera churcha hua
baatain to khoob huin, lufj ek na kharcha hua

kya hua fir, aag se jo aashiana jal gya
saaf raasta dekhiye ab naye makaano ka hua

peeche murh ke dekhna kya, safar kaise cut ta rha
jo iraada ab mera aage jaane ka hua

raaste ki dushwariyo ko ahteraam hai dil se ( aader)
thorhi thi samaj meri, inse ijaafa bahut hua

girta rha thokron se kai baar andheron main
badhta rha aage ko main baar baar uthta hua

ek ladai kafi na thi, dushmano se jeetne ko
jeet ta gya main dilon ko, kai baar ladta hua

nahin torhta ab kaliyan, dekhta bahaaro ko aate
tha "anaarhi" main bahut, ab syana bahut hua

Barsaat ka din

Us Din Bhi Bersaat Thi,
Jub Hum Bheegh Ke Aaye The

Berka Ke Wo Din Apne The,
Tum Bhi Nahin Praye The

Raat To Chahe Bahut Ghani Thi,
Phir Bhi Dikhte Saaye The

Aur Tumne Kuch Kha Tha Aise,
Wo Hum Sun Na Paaye The

Thaam Liye The Tumne Wo,
Aansu Akhiyon Main Jo Aaye The

Bahut Din Beete In Baaton Ko,
Tum Aaj Bhut Yaad Aaye The

Aaj Wahi Bersaat Ka Din Hai,
Jub Hum Bheeg Ke Aaye The

Rauz youn hi

रोज़ यूं ही कतरा कतरा कर बह गया ,
लहू रग़ों का मेरी आंख का पानी बन के.

खुली आंख से भी ना संभला, वो ख्वाब बिखर गया,
है यादों में मेरी, बचपन की कहानी बन के.

मैं किस ओर देखूं - कहां ढूंढा करूं उसको,
मेरा था कभी - अब चला गया जवानी बन के.

ऐसी कौन सी रग है बाकी- जो दुखती नहीं,
न छेड़ इनको तू अब- रुत सुहानी बन के.

तू वही है - हूं मै भी वही हमसाया तेरा,
फिर मिले क्युं ए ज़िन्दगी-रोज़ बेगानी बन के.

मत देख यूं पहले से ही हूं ज़ख्मी बहुत,
जो मर गया तो रुह भटकेगी - दीवानी बन के.

"Anaarhi"

Do Kathaayen

इक पन्ने पे थी दो कथाएं लिखी,
इक इस तरफ़ थी इक उस तरफ़ थी.

जो मेरी कथा थी वो इस तरफ़ थी,
जो तेरी कथा थी वो उस तरफ़ थी.

जो मैं पढ़ता रहा वो मेरी कथा थी, 
जो तू पढ़ता रहा वो तेरी कथा थी.

न मैंने तेरी पढ़ी वो जो उस तरफ़ थी,
न तूने मेरी पढ़ी वो जो इस तरफ़ थी.

दोनो अंजान थे, दोनो हैरान थे,
बस अपनी व्यथा से ही परेशान थे.

न तू समझा मेरी वो जो इस तरफ़ थी,
न मैं समझा तेरी वो जो उस तरफ़ थी.
इक पन्ने पे थी दो कथाएं लिखी.

"अनाढ़ी"

Mohabbat Ka Makbara

रंग ए मोहब्ब्त से सुखन मेरा बेज़ार नज़र आता है
मेरी कलम को बस दुनिया का कारोबार नज़र आता है.

मोहब्ब्त चांद सितारों की, हिज़्र ओ विसाल की दास्तां बस,
मुझे सितारों से पहले निगाह का वार नज़र आता है.

खुदगर्ज़ दुनिया के खुदगर्ज़ बाशिंदों की खुदगर्ज़ मोहब्ब्त में
नफ़रतों का ढेर है जो बारूदों के आम्बार लगाता है.

मोहब्ब्त पैगाम कई पैगंबरों का है सदियों से ईंसान को
कौन है शैतान यहां जो नफ़रतो से संसार जलाता है.

इक अंधा बादशाह बनवाता है मोहब्ब्त का मकबरा, (ताज)
दूजा होकर अंधा अपनों के गले को दार दिखाता है. (औरंगज़ेब)

नफ़रतों का जहॉ है जहां नफ़रतें खाई परोसी और बोई गईं
जफ़ाओं के खेत से इंसा फ़सले मोहब्बते बहार चाहता है

मत करो बात दिखावटी मोहब्ब्त की, झूठी लगतीं है मुझे
देखूं दौर ए मोहब्ब्त तो "अनाढ़ी" कलेजा बाहर को आता है.

Anaarhi log jo hote hain

ये बंद होते दरवाज़े सब- इक यही इशारा करते हैं
बस्ती में वीराना-ए-हस्ती है - कहीं और बसारा करते हैं

दर्द मिला न टीस उठी न दिल को ही कोई घाव लगा,
इक बार में हासिल कुछ न हुआ - ये सफ़र दोबारा करतें हैं.

छोड़ दे  इस महफ़िल को अब- इतना भी इसपे भरम न रख,
कदर दान ये यार नहीं - ना ही मान तुम्हारा करते हैं.

समझ के आब-ए-गुनाह जिसे - हम छोड़ आए मयखानें में,
पी पी के उसे सब काफिर यार- सेहत दो चारा करते हैं.

इस दैर-औ-हरम में घूंम के - अब तक जन्म गंवा दिया,
मैकदे में जाके शेख जी चलो बाकी गुजारा करते हैं.

तकदीर के टूटे बरतन में - जो डालूं सो बह जाता है,
देख तारों की ओर हम - क्या रोज़ निहार करते हैं.

ए कायनात के रहनुमां - तेरी फिरका परस्ती ज़ाहिर है,
तू उनको ही सब देता है - जो पाप हज़ारा करते हैं.

दुनियां में ग़ौर से देखें तो - मन मौज जुगाड़ी करता है,
"आनाड़ी" लोग जो होते हैं - मन मार गुज़ारा करते हैं.

"अनाड़ी"

Saturday, June 19, 2010

Anaarhi Ki Introduction

न ही  कोई रंग   है  , न ही काम रूप  मेरा
कुदरत ने  बस इल्म से सवारा मुझको

जो आया सामने बस कर दिया सजदा  मैंने
जो न दे दुआ , पर दे तो न बद्दुआ मुझको

हसीन वादों की इस मोका परस्त दुनिया में 
रश्क है  अपने पे किसी के काम का बनाया मुझको

Friday, June 18, 2010

MAIN TO TALABGAR THA

न मै ही किसी के आया कभी , न कोई काम मेरे
ख़त्म जिन्दगी के हो गए , य़ू ही रिश्ते तमाम मेरे

यादों में जिनको रक्खा है फूलों सा सहेज कर ,
फिर से उन्हें मिला दे मुझे , वो पुराने यार मेरे .

इस जिन्दगी में हो गए हैं मुझसे कई गुनाह ,
कुछ थी मेरी मजबूरियां , और कुछ अरमान थे मेरे ,

अब रहम कर तू इतना , है कलम में तेरी ताकत ,
इक नई तकदीर लिख दे , कर माफ़ गुनाह मेरे ,

रातों में जग जग के जिन सपनों को देखा ,
अब उनको हकीकत कर दे , रह हए जो ख़ाब मेरे .

मैं तो तलबगार था न रख सका हिसाब ,
क्या उसके हिस्से आया और क्या आया हिस्से मेरे ,

न मै ही किसी के आया कभी , न कोई काम मेरे
ख़त्म जिन्दगी के हो गए , य़ू ही रिश्ते तमाम मेरे

DARD

काँटों की  पढ़   गई    है  कुछ   इस   तरह  की   आदत
न   चुभें  जिस  पल  लगे  जहाँ  से  गुज़र  गये

ऐसा   नहीं   के    जिंदगी    बस   टीसों   में   ही  गुजरी
कुछ  दिन  hmare  bhi   jannat   se   guzar   gye 

RAT RACE

शरम   हया  से  वो उपर हैं ,
उन से तू मत होढ़ कर ,

खुश  रह अपनी मुफलिसी में
जर  पे न इतना जोर कर ,

जाना पढ़ेगा  हमाम में
जामा बाहर ही छोढ़  कर ,

फिर गुजरेगा गली से हर
तू मुह  पे कपढ़ा  ओढ़ कर

DAGABAAJ

चेहरे  पे मासूमियत  , मन  में   कपट   रही   होगी   ,
तभी   उसने   फरेब   किया   होगा

बनाकर  सूरत  भोली    कोई  जूठी  दास्ताँ   कही  होगी  ,
तभी  उसने  दगा  दिया  होगा  ,

रहता    है   होशियार  " अनाढ़ी  " सदा  ही  गैरों  se      ,
उसने apna    बनाकर  ही  dhokha    दिया  होगा

TERE KAAM AANA HAI MUJE

हूँ अभी bhi  अदना  सा  मैं  , meri  bulandi  पे  n  ja
wo  to  logon  ne  sir  पे  chda  rukkha  hai  muje  .

 हूँ whi  anarhi  asuftanva  मैं , meri  sohbat pe n ja ( buk buk krne wala )
bde logon ne shokiya apna rukkha hai muje

हूँ bebus behal gumgin , मैं meri सूरत पे n ja
bta ke haledil अभी aks bhane hain mujhe

हूँ kanker nhin goher मैं  , meri kimat पे n ja
rkhle pas , tere kam अभी aana hai muje
 

Wednesday, June 16, 2010

Aadmi ki introduction "MAIN"

मैं गाता जब भी राग "मैं ",
सुर पंचम सदा लगाता हूँ .

कुछ काम नहीं मैं काज का ,
और महल हवाई बनता हूँ .

किश्त साइकिल की अभी बाकी है ,
पर गीत कार के गाता हूँ .


मैं गाता जब भी राग "मैं ", सुर पंचम सदा लगाता हूँ .


आस पास कोई दूर निकट हो ,
सबको नीचा दिखलाता हूँ .

हल विरल हो या सरल हो ,
हर समस्या विकट बतलाता हूँ .

चाहे कोई कुछ भी बोले ,
बस अपनी चलवाता हूँ .


मैं गाता जब भी राग "मैं ", सुर पंचम सदा लगाता हूँ .

तू क्या है ? तू कुछ भी नहीं ,
ये बात सदा समझाता हूँ .

मैं वो हूँ जो कोई नहीं ,
यही दावा ठुक्वाता हूँ .


लिखूं "अनाढ़ी " पर हूँ खिलाढ़ी ,
ख़म ठोक के मैं बतलाता हूँ .


मैं गाता जब भी राग "मैं ",
सुर पंचम सदा लगाता हूँ .

AAENA

तराजू पे रक्खा था जो मन भर का
तोला तो मासा निकला .

दूर से देखा था तो था हीरा,
हाथ आया तो शीशा निकला.

लगा जो निशाने पे वो तीर,
न लगा तो तुक्का निकला.

ऊची दूकान का मशहूर पकवान,
जब भी खाया फीका निकला.

सूरज का गुमान pala जिसपे ,
वो भुझा हुआ शोला निकला.

जिसे हर सवाल का हल समझे,
वो जमा घटा में सिफ़र निकला.

दोनों तरफ से dhasta है जो ,
सांप नहीं नेता निकला.

जो करे भरोसा तो दे धोखा इंसां ,
था रब ने बनाया, पर क्या निकला ,

मत कर भरोसा किसी शे पर "अनाढ़ी"
कसौटी ने जब भी कसा सोना खरा
हर बार खोटा निकला , हर बार खोटा निकला , हर बार खोटा निकला

kahe tu duniya me aaya

अपने आगमन पर विशेष
ये जूठ और कपट की काया ,
लेकर तू दुनिया में आया .
जब तन से तुने मोह लगाया ,
मन पे पर गयी धन की छाया. ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .

ये भरकता लहू धधकती जवानी ,
इसने किसी की एक न मानी ,
अब ठहर जरा के भुढ़ापा आया
सोच जरा अब तक क्या पाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .

होती थी जब ज्ञान की बरखा ,
तूने बर्तन उल्टा रक्खा ,
जान लेने से ज्ञान न आया
क्यों गर्मी में प्यासा तरसाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .


बचपन बीता आई जवानी ,
जवानी भी हो गई कहानी ,
जिस रूप की थी दुनिया दीवानी ,
उस मिटटी ने क्या रंग दिखाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .

देख जरा तू पीछे मुढ़ के ,
संगी कहाँ रह गए bhichar के ,
दूर दूर तक नहीं दिखता साया ,
क्या चाहा था और क्या पाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .

होने को है अब तू पचासी (50),
पौनी कट गई , बची जरा सी ,
कर मौज , "अनाढ़ी" छोढ़ उदासी ,
फिर मत कहना के वक़्त नहीं आया ,
ये दिन यही संदेसा लाया ,
है सुंदर उपहार ये कोमल काया ,
तू सुख "पावन" संसार में आया .

dil ki baat

न पूछ मुझसे यूँ दिल की बात,
के सच बोलूं तो जां से गया .

मैं ये बोलूं या वो बोलूं ,
मैं जो बोलूं पर निगाह से गया .

रख गीता पर हाथ भी
करूं जो मैं बयाँ अपना
वो न करेंगे ऐतबार ,
और झूठा मैं जुबां से गया .

जालिम जमाना न समझे दिल की ,
कहूँ न कहूँ पर जहाँ से गया .

" अनाढ़ी " बन्द रख जुबान अपनी ,
निकला जो तीर तो कमां से गया ..

JA PATA LAGA KIMAT KA

ये ऊँची ऊँची बातें , ढोल ये दरिया दिली का ,
आदमी को कुछ न समझना , फलसफा हर आदमी का ,

तू क्या है बतला जरा , मैं कौन हूँ समझा दूंगा ,
आदमी आदमी अलग अलग , अलग पैमाना मापने का.

तन का उजला दिखता सबको , मन की मैल कोई न देखे ,
हर चीज यहाँ पे बिकती यार , जा पता लगा कीमत का ,

उल्टी बात कबीर की ये दुनिया न मानी ,
ले "अनाढ़ी" अब सुन तू , ये दोहा असली का ,

भला न dhudhan मैं चला , जग भलों से खली होई ,
जब मुह खोलूं तो कहूँ , मुझ से भला न कोई .

huner-E - Aashiki

इक चाह थी दिल की के तू कर आशिकी
हर फन मे माहिर तू हर दम निकला

कटारे चश्म से यूँ काटा जिगर को
खूं बहुत निकला पर जरा कम निकला .

इन्तजारे जान में थी यूँ जान अटकी
ये हुआ दीदार और वो दम निकला .

बहुत देर उलझे उस जुल्फों सितम में
किये जतन लाख पर वो ख़म न निकला .

चर्चे बहुत थे जिस बला के शहर में
वो हूर ए हुस्न तो मेरा सनम निकला

जो किया ये वादा के तुझी पे मरेंगे
फिर जनाजा हमारा दम बदम निकला

नहीं बस की आशिकी तेरे "अनाढ़ी "
इस हुनर में तू बहुत कम निकला .

GHAR GHAR KI KAHANI

नई पोध पे आइ बहार
नए नए अब बन गये यार
सर फूटेंगे अब दो चार
ये अल्लाह की मर्जी है


नया ज़माना नई जवानी
शुरू होगी इक नई कहानी
जवानी जब हो जाए दीवानी
फिर, अल्लाह की मर्जी है

लड़का देखे लड़की मुस्काय
थोढ़ा हिचके थोढ़ा शर्माए
अच्छा चलो शादी हो जाए
यही, अल्लाह की मर्जी है

कुछ बरस अब कर ले मौज
फिर तो तंग करेगी फ़ौज
चढ़ सूली पे अब हर रोज
पर, अल्लाह की मर्जी है


सुबह से निकला शाम को आए
बीवी jhagrhe और चिल्लाए
बस यही कमा के घर को लाये
लग, अल्लाह की मर्जी है

चाहे देस हो या परदेस
बेटा जब लग जाए रेस
समझो ख़त्म हो गया केस
जुट, अल्लाह की मर्जी है

देख ये कैसा वक़्त का खेल
तेरी बन चुकी है रेल
नही रहा अब किसी से मेल
चुप , अल्लाह की मर्जी है

जोढ़ जोढ़ के ये सरमाया
कचरा हो गई तेरी काया
क्या माया का सुख पाया
रो , अल्लाह की मर्जी है

गाढ़े पसीने की थी कमाई
ओलाद ने इस पे आंख गढ़ाई
बुड्ढ़े ने क्या उम्र है पाई
क्या , अल्लाह की मर्जी है

इसने कही उसने न मानी
घर घर की है यही कहानी
अब कुछ कहना है बेमानी
सुन , अल्लाह की मर्जी है

भाई भाई में हो तकरार
चाहे दो हों चाहे चार
चलो बना ढालें दीवार
नहीं , अल्लाह की मर्जी है

रिश्ते हो गये धन के कर्जी
कोई न पूछे किसी की मर्जी
जो दिखता है सब है फर्जी
क्या , ये अल्लाह की मर्जी है

जब उतरे पटरी से गाढ़ी
काम न आए कोई यारी
जिन्दगी भर तू रहा "अनाढ़ी "
ये तो अल्लाह की ही मर्जी है

Main to talabgaar tha

न मै ही किसी के आया कभी , न कोई काम मेरे
ख़त्म जिन्दगी के हो गए , य़ू ही रिश्ते तमाम मेरे

यादों में जिनको रक्खा है फूलों सा सहेज कर ,
फिर से उन्हें मिला दे मुझे , वो पुराने यार मेरे .

इस जिन्दगी में हो गए हैं मुझसे कई गुनाह ,
कुछ थी मेरी मजबूरियां , और कुछ अरमान थे मेरे ,

अब रहम कर तू इतना , है कलम में तेरी ताकत ,
इक नई तकदीर लिख दे , कर माफ़ गुनाह मेरे ,

रातों में जग जग के जिन सपनों को देखा ,
अब उनको हकीकत कर दे , रह हए जो ख़ाब मेरे .

मैं तो तलबगार था न रख सका हिसाब ,
क्या उसके हिस्से आया और क्या आया हिस्से मेरे ,

न मै ही किसी के आया कभी , न कोई काम मेरे
ख़त्म जिन्दगी के हो गए , य़ू ही रिश्ते तमाम मेरे