न ही कोई रंग है , न ही काम रूप मेरा
कुदरत ने बस इल्म से सवारा मुझको
जो आया सामने बस कर दिया सजदा मैंने
जो न दे दुआ , पर दे तो न बद्दुआ मुझको
हसीन वादों की इस मोका परस्त दुनिया में
रश्क है अपने पे किसी के काम का बनाया मुझको
चलते रहे अकेले कोई मिला न सानी,..................................... कैसे बने फसाने कैसे बने कहानी,............................ कुछ इस तरह निभाए इस ज़िन्दगी से रिश्ते,................ इसने हमारी मानी ना हमने इसकी मानी.................
"Duaayen bahut see dee.n sabane magar
asar hone main hi zamaane lage."
asar hone main hi zamaane lage."
Saturday, June 19, 2010
Friday, June 18, 2010
MAIN TO TALABGAR THA
न मै ही किसी के आया कभी , न कोई काम मेरे
ख़त्म जिन्दगी के हो गए , य़ू ही रिश्ते तमाम मेरे
यादों में जिनको रक्खा है फूलों सा सहेज कर ,
फिर से उन्हें मिला दे मुझे , वो पुराने यार मेरे .
इस जिन्दगी में हो गए हैं मुझसे कई गुनाह ,
कुछ थी मेरी मजबूरियां , और कुछ अरमान थे मेरे ,
अब रहम कर तू इतना , है कलम में तेरी ताकत ,
इक नई तकदीर लिख दे , कर माफ़ गुनाह मेरे ,
रातों में जग जग के जिन सपनों को देखा ,
अब उनको हकीकत कर दे , रह हए जो ख़ाब मेरे .
मैं तो तलबगार था न रख सका हिसाब ,
क्या उसके हिस्से आया और क्या आया हिस्से मेरे ,
न मै ही किसी के आया कभी , न कोई काम मेरे
ख़त्म जिन्दगी के हो गए , य़ू ही रिश्ते तमाम मेरे
ख़त्म जिन्दगी के हो गए , य़ू ही रिश्ते तमाम मेरे
यादों में जिनको रक्खा है फूलों सा सहेज कर ,
फिर से उन्हें मिला दे मुझे , वो पुराने यार मेरे .
इस जिन्दगी में हो गए हैं मुझसे कई गुनाह ,
कुछ थी मेरी मजबूरियां , और कुछ अरमान थे मेरे ,
अब रहम कर तू इतना , है कलम में तेरी ताकत ,
इक नई तकदीर लिख दे , कर माफ़ गुनाह मेरे ,
रातों में जग जग के जिन सपनों को देखा ,
अब उनको हकीकत कर दे , रह हए जो ख़ाब मेरे .
मैं तो तलबगार था न रख सका हिसाब ,
क्या उसके हिस्से आया और क्या आया हिस्से मेरे ,
न मै ही किसी के आया कभी , न कोई काम मेरे
ख़त्म जिन्दगी के हो गए , य़ू ही रिश्ते तमाम मेरे
DARD
काँटों की पढ़ गई है कुछ इस तरह की आदत
न चुभें जिस पल लगे जहाँ से गुज़र गये
ऐसा नहीं के जिंदगी बस टीसों में ही गुजरी
कुछ दिन hmare bhi jannat se guzar gye
न चुभें जिस पल लगे जहाँ से गुज़र गये
ऐसा नहीं के जिंदगी बस टीसों में ही गुजरी
कुछ दिन hmare bhi jannat se guzar gye
RAT RACE
शरम हया से वो उपर हैं ,
उन से तू मत होढ़ कर ,
खुश रह अपनी मुफलिसी में
जर पे न इतना जोर कर ,
जाना पढ़ेगा हमाम में
जामा बाहर ही छोढ़ कर ,
फिर गुजरेगा गली से हर
तू मुह पे कपढ़ा ओढ़ कर
उन से तू मत होढ़ कर ,
खुश रह अपनी मुफलिसी में
जर पे न इतना जोर कर ,
जाना पढ़ेगा हमाम में
जामा बाहर ही छोढ़ कर ,
फिर गुजरेगा गली से हर
तू मुह पे कपढ़ा ओढ़ कर
DAGABAAJ
चेहरे पे मासूमियत , मन में कपट रही होगी ,
तभी उसने फरेब किया होगा
बनाकर सूरत भोली कोई जूठी दास्ताँ कही होगी ,
तभी उसने दगा दिया होगा ,
रहता है होशियार " अनाढ़ी " सदा ही गैरों se ,
उसने apna बनाकर ही dhokha दिया होगा
तभी उसने फरेब किया होगा
बनाकर सूरत भोली कोई जूठी दास्ताँ कही होगी ,
तभी उसने दगा दिया होगा ,
रहता है होशियार " अनाढ़ी " सदा ही गैरों se ,
उसने apna बनाकर ही dhokha दिया होगा
TERE KAAM AANA HAI MUJE
हूँ अभी bhi अदना सा मैं , meri bulandi पे n ja
wo to logon ne sir पे chda rukkha hai muje .
हूँ whi anarhi asuftanva मैं , meri sohbat pe n ja ( buk buk krne wala )
bde logon ne shokiya apna rukkha hai muje
हूँ bebus behal gumgin , मैं meri सूरत पे n ja
bta ke haledil अभी aks bhane hain mujhe
हूँ kanker nhin goher मैं , meri kimat पे n ja
rkhle pas , tere kam अभी aana hai muje
wo to logon ne sir पे chda rukkha hai muje .
हूँ whi anarhi asuftanva मैं , meri sohbat pe n ja ( buk buk krne wala )
bde logon ne shokiya apna rukkha hai muje
हूँ bebus behal gumgin , मैं meri सूरत पे n ja
bta ke haledil अभी aks bhane hain mujhe
हूँ kanker nhin goher मैं , meri kimat पे n ja
rkhle pas , tere kam अभी aana hai muje
Wednesday, June 16, 2010
Aadmi ki introduction "MAIN"
मैं गाता जब भी राग "मैं ",
सुर पंचम सदा लगाता हूँ .
कुछ काम नहीं मैं काज का ,
और महल हवाई बनता हूँ .
किश्त साइकिल की अभी बाकी है ,
पर गीत कार के गाता हूँ .
मैं गाता जब भी राग "मैं ", सुर पंचम सदा लगाता हूँ .
आस पास कोई दूर निकट हो ,
सबको नीचा दिखलाता हूँ .
हल विरल हो या सरल हो ,
हर समस्या विकट बतलाता हूँ .
चाहे कोई कुछ भी बोले ,
बस अपनी चलवाता हूँ .
मैं गाता जब भी राग "मैं ", सुर पंचम सदा लगाता हूँ .
तू क्या है ? तू कुछ भी नहीं ,
ये बात सदा समझाता हूँ .
मैं वो हूँ जो कोई नहीं ,
यही दावा ठुक्वाता हूँ .
लिखूं "अनाढ़ी " पर हूँ खिलाढ़ी ,
ख़म ठोक के मैं बतलाता हूँ .
मैं गाता जब भी राग "मैं ",
सुर पंचम सदा लगाता हूँ .
सुर पंचम सदा लगाता हूँ .
कुछ काम नहीं मैं काज का ,
और महल हवाई बनता हूँ .
किश्त साइकिल की अभी बाकी है ,
पर गीत कार के गाता हूँ .
मैं गाता जब भी राग "मैं ", सुर पंचम सदा लगाता हूँ .
आस पास कोई दूर निकट हो ,
सबको नीचा दिखलाता हूँ .
हल विरल हो या सरल हो ,
हर समस्या विकट बतलाता हूँ .
चाहे कोई कुछ भी बोले ,
बस अपनी चलवाता हूँ .
मैं गाता जब भी राग "मैं ", सुर पंचम सदा लगाता हूँ .
तू क्या है ? तू कुछ भी नहीं ,
ये बात सदा समझाता हूँ .
मैं वो हूँ जो कोई नहीं ,
यही दावा ठुक्वाता हूँ .
लिखूं "अनाढ़ी " पर हूँ खिलाढ़ी ,
ख़म ठोक के मैं बतलाता हूँ .
मैं गाता जब भी राग "मैं ",
सुर पंचम सदा लगाता हूँ .
AAENA
तराजू पे रक्खा था जो मन भर का
तोला तो मासा निकला .
दूर से देखा था तो था हीरा,
हाथ आया तो शीशा निकला.
लगा जो निशाने पे वो तीर,
न लगा तो तुक्का निकला.
ऊची दूकान का मशहूर पकवान,
जब भी खाया फीका निकला.
सूरज का गुमान pala जिसपे ,
वो भुझा हुआ शोला निकला.
जिसे हर सवाल का हल समझे,
वो जमा घटा में सिफ़र निकला.
दोनों तरफ से dhasta है जो ,
सांप नहीं नेता निकला.
जो करे भरोसा तो दे धोखा इंसां ,
था रब ने बनाया, पर क्या निकला ,
मत कर भरोसा किसी शे पर "अनाढ़ी"
कसौटी ने जब भी कसा सोना खरा
हर बार खोटा निकला , हर बार खोटा निकला , हर बार खोटा निकला
तोला तो मासा निकला .
दूर से देखा था तो था हीरा,
हाथ आया तो शीशा निकला.
लगा जो निशाने पे वो तीर,
न लगा तो तुक्का निकला.
ऊची दूकान का मशहूर पकवान,
जब भी खाया फीका निकला.
सूरज का गुमान pala जिसपे ,
वो भुझा हुआ शोला निकला.
जिसे हर सवाल का हल समझे,
वो जमा घटा में सिफ़र निकला.
दोनों तरफ से dhasta है जो ,
सांप नहीं नेता निकला.
जो करे भरोसा तो दे धोखा इंसां ,
था रब ने बनाया, पर क्या निकला ,
मत कर भरोसा किसी शे पर "अनाढ़ी"
कसौटी ने जब भी कसा सोना खरा
हर बार खोटा निकला , हर बार खोटा निकला , हर बार खोटा निकला
kahe tu duniya me aaya
अपने आगमन पर विशेष
ये जूठ और कपट की काया ,
लेकर तू दुनिया में आया .
जब तन से तुने मोह लगाया ,
मन पे पर गयी धन की छाया. ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
ये भरकता लहू धधकती जवानी ,
इसने किसी की एक न मानी ,
अब ठहर जरा के भुढ़ापा आया
सोच जरा अब तक क्या पाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
होती थी जब ज्ञान की बरखा ,
तूने बर्तन उल्टा रक्खा ,
जान लेने से ज्ञान न आया
क्यों गर्मी में प्यासा तरसाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
बचपन बीता आई जवानी ,
जवानी भी हो गई कहानी ,
जिस रूप की थी दुनिया दीवानी ,
उस मिटटी ने क्या रंग दिखाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
देख जरा तू पीछे मुढ़ के ,
संगी कहाँ रह गए bhichar के ,
दूर दूर तक नहीं दिखता साया ,
क्या चाहा था और क्या पाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
होने को है अब तू पचासी (50),
पौनी कट गई , बची जरा सी ,
कर मौज , "अनाढ़ी" छोढ़ उदासी ,
फिर मत कहना के वक़्त नहीं आया ,
ये दिन यही संदेसा लाया ,
है सुंदर उपहार ये कोमल काया ,
तू सुख "पावन" संसार में आया .
ये जूठ और कपट की काया ,
लेकर तू दुनिया में आया .
जब तन से तुने मोह लगाया ,
मन पे पर गयी धन की छाया. ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
ये भरकता लहू धधकती जवानी ,
इसने किसी की एक न मानी ,
अब ठहर जरा के भुढ़ापा आया
सोच जरा अब तक क्या पाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
होती थी जब ज्ञान की बरखा ,
तूने बर्तन उल्टा रक्खा ,
जान लेने से ज्ञान न आया
क्यों गर्मी में प्यासा तरसाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
बचपन बीता आई जवानी ,
जवानी भी हो गई कहानी ,
जिस रूप की थी दुनिया दीवानी ,
उस मिटटी ने क्या रंग दिखाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
देख जरा तू पीछे मुढ़ के ,
संगी कहाँ रह गए bhichar के ,
दूर दूर तक नहीं दिखता साया ,
क्या चाहा था और क्या पाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
होने को है अब तू पचासी (50),
पौनी कट गई , बची जरा सी ,
कर मौज , "अनाढ़ी" छोढ़ उदासी ,
फिर मत कहना के वक़्त नहीं आया ,
ये दिन यही संदेसा लाया ,
है सुंदर उपहार ये कोमल काया ,
तू सुख "पावन" संसार में आया .
dil ki baat
न पूछ मुझसे यूँ दिल की बात,
के सच बोलूं तो जां से गया .
मैं ये बोलूं या वो बोलूं ,
मैं जो बोलूं पर निगाह से गया .
रख गीता पर हाथ भी
करूं जो मैं बयाँ अपना
वो न करेंगे ऐतबार ,
और झूठा मैं जुबां से गया .
जालिम जमाना न समझे दिल की ,
कहूँ न कहूँ पर जहाँ से गया .
" अनाढ़ी " बन्द रख जुबान अपनी ,
निकला जो तीर तो कमां से गया ..
के सच बोलूं तो जां से गया .
मैं ये बोलूं या वो बोलूं ,
मैं जो बोलूं पर निगाह से गया .
रख गीता पर हाथ भी
करूं जो मैं बयाँ अपना
वो न करेंगे ऐतबार ,
और झूठा मैं जुबां से गया .
जालिम जमाना न समझे दिल की ,
कहूँ न कहूँ पर जहाँ से गया .
" अनाढ़ी " बन्द रख जुबान अपनी ,
निकला जो तीर तो कमां से गया ..
JA PATA LAGA KIMAT KA
ये ऊँची ऊँची बातें , ढोल ये दरिया दिली का ,
आदमी को कुछ न समझना , फलसफा हर आदमी का ,
तू क्या है बतला जरा , मैं कौन हूँ समझा दूंगा ,
आदमी आदमी अलग अलग , अलग पैमाना मापने का.
तन का उजला दिखता सबको , मन की मैल कोई न देखे ,
हर चीज यहाँ पे बिकती यार , जा पता लगा कीमत का ,
उल्टी बात कबीर की ये दुनिया न मानी ,
ले "अनाढ़ी" अब सुन तू , ये दोहा असली का ,
भला न dhudhan मैं चला , जग भलों से खली होई ,
जब मुह खोलूं तो कहूँ , मुझ से भला न कोई .
आदमी को कुछ न समझना , फलसफा हर आदमी का ,
तू क्या है बतला जरा , मैं कौन हूँ समझा दूंगा ,
आदमी आदमी अलग अलग , अलग पैमाना मापने का.
तन का उजला दिखता सबको , मन की मैल कोई न देखे ,
हर चीज यहाँ पे बिकती यार , जा पता लगा कीमत का ,
उल्टी बात कबीर की ये दुनिया न मानी ,
ले "अनाढ़ी" अब सुन तू , ये दोहा असली का ,
भला न dhudhan मैं चला , जग भलों से खली होई ,
जब मुह खोलूं तो कहूँ , मुझ से भला न कोई .
huner-E - Aashiki
इक चाह थी दिल की के तू कर आशिकी
हर फन मे माहिर तू हर दम निकला
कटारे चश्म से यूँ काटा जिगर को
खूं बहुत निकला पर जरा कम निकला .
इन्तजारे जान में थी यूँ जान अटकी
ये हुआ दीदार और वो दम निकला .
बहुत देर उलझे उस जुल्फों सितम में
किये जतन लाख पर वो ख़म न निकला .
चर्चे बहुत थे जिस बला के शहर में
वो हूर ए हुस्न तो मेरा सनम निकला
जो किया ये वादा के तुझी पे मरेंगे
फिर जनाजा हमारा दम बदम निकला
नहीं बस की आशिकी तेरे "अनाढ़ी "
इस हुनर में तू बहुत कम निकला .
हर फन मे माहिर तू हर दम निकला
कटारे चश्म से यूँ काटा जिगर को
खूं बहुत निकला पर जरा कम निकला .
इन्तजारे जान में थी यूँ जान अटकी
ये हुआ दीदार और वो दम निकला .
बहुत देर उलझे उस जुल्फों सितम में
किये जतन लाख पर वो ख़म न निकला .
चर्चे बहुत थे जिस बला के शहर में
वो हूर ए हुस्न तो मेरा सनम निकला
जो किया ये वादा के तुझी पे मरेंगे
फिर जनाजा हमारा दम बदम निकला
नहीं बस की आशिकी तेरे "अनाढ़ी "
इस हुनर में तू बहुत कम निकला .
GHAR GHAR KI KAHANI
नई पोध पे आइ बहार
नए नए अब बन गये यार
सर फूटेंगे अब दो चार
ये अल्लाह की मर्जी है
नया ज़माना नई जवानी
शुरू होगी इक नई कहानी
जवानी जब हो जाए दीवानी
फिर, अल्लाह की मर्जी है
लड़का देखे लड़की मुस्काय
थोढ़ा हिचके थोढ़ा शर्माए
अच्छा चलो शादी हो जाए
यही, अल्लाह की मर्जी है
कुछ बरस अब कर ले मौज
फिर तो तंग करेगी फ़ौज
चढ़ सूली पे अब हर रोज
पर, अल्लाह की मर्जी है
सुबह से निकला शाम को आए
बीवी jhagrhe और चिल्लाए
बस यही कमा के घर को लाये
लग, अल्लाह की मर्जी है
चाहे देस हो या परदेस
बेटा जब लग जाए रेस
समझो ख़त्म हो गया केस
जुट, अल्लाह की मर्जी है
देख ये कैसा वक़्त का खेल
तेरी बन चुकी है रेल
नही रहा अब किसी से मेल
चुप , अल्लाह की मर्जी है
जोढ़ जोढ़ के ये सरमाया
कचरा हो गई तेरी काया
क्या माया का सुख पाया
रो , अल्लाह की मर्जी है
गाढ़े पसीने की थी कमाई
ओलाद ने इस पे आंख गढ़ाई
बुड्ढ़े ने क्या उम्र है पाई
क्या , अल्लाह की मर्जी है
इसने कही उसने न मानी
घर घर की है यही कहानी
अब कुछ कहना है बेमानी
सुन , अल्लाह की मर्जी है
भाई भाई में हो तकरार
चाहे दो हों चाहे चार
चलो बना ढालें दीवार
नहीं , अल्लाह की मर्जी है
रिश्ते हो गये धन के कर्जी
कोई न पूछे किसी की मर्जी
जो दिखता है सब है फर्जी
क्या , ये अल्लाह की मर्जी है
जब उतरे पटरी से गाढ़ी
काम न आए कोई यारी
जिन्दगी भर तू रहा "अनाढ़ी "
ये तो अल्लाह की ही मर्जी है
नए नए अब बन गये यार
सर फूटेंगे अब दो चार
ये अल्लाह की मर्जी है
नया ज़माना नई जवानी
शुरू होगी इक नई कहानी
जवानी जब हो जाए दीवानी
फिर, अल्लाह की मर्जी है
लड़का देखे लड़की मुस्काय
थोढ़ा हिचके थोढ़ा शर्माए
अच्छा चलो शादी हो जाए
यही, अल्लाह की मर्जी है
कुछ बरस अब कर ले मौज
फिर तो तंग करेगी फ़ौज
चढ़ सूली पे अब हर रोज
पर, अल्लाह की मर्जी है
सुबह से निकला शाम को आए
बीवी jhagrhe और चिल्लाए
बस यही कमा के घर को लाये
लग, अल्लाह की मर्जी है
चाहे देस हो या परदेस
बेटा जब लग जाए रेस
समझो ख़त्म हो गया केस
जुट, अल्लाह की मर्जी है
देख ये कैसा वक़्त का खेल
तेरी बन चुकी है रेल
नही रहा अब किसी से मेल
चुप , अल्लाह की मर्जी है
जोढ़ जोढ़ के ये सरमाया
कचरा हो गई तेरी काया
क्या माया का सुख पाया
रो , अल्लाह की मर्जी है
गाढ़े पसीने की थी कमाई
ओलाद ने इस पे आंख गढ़ाई
बुड्ढ़े ने क्या उम्र है पाई
क्या , अल्लाह की मर्जी है
इसने कही उसने न मानी
घर घर की है यही कहानी
अब कुछ कहना है बेमानी
सुन , अल्लाह की मर्जी है
भाई भाई में हो तकरार
चाहे दो हों चाहे चार
चलो बना ढालें दीवार
नहीं , अल्लाह की मर्जी है
रिश्ते हो गये धन के कर्जी
कोई न पूछे किसी की मर्जी
जो दिखता है सब है फर्जी
क्या , ये अल्लाह की मर्जी है
जब उतरे पटरी से गाढ़ी
काम न आए कोई यारी
जिन्दगी भर तू रहा "अनाढ़ी "
ये तो अल्लाह की ही मर्जी है
Main to talabgaar tha
न मै ही किसी के आया कभी , न कोई काम मेरे
ख़त्म जिन्दगी के हो गए , य़ू ही रिश्ते तमाम मेरे
यादों में जिनको रक्खा है फूलों सा सहेज कर ,
फिर से उन्हें मिला दे मुझे , वो पुराने यार मेरे .
इस जिन्दगी में हो गए हैं मुझसे कई गुनाह ,
कुछ थी मेरी मजबूरियां , और कुछ अरमान थे मेरे ,
अब रहम कर तू इतना , है कलम में तेरी ताकत ,
इक नई तकदीर लिख दे , कर माफ़ गुनाह मेरे ,
रातों में जग जग के जिन सपनों को देखा ,
अब उनको हकीकत कर दे , रह हए जो ख़ाब मेरे .
मैं तो तलबगार था न रख सका हिसाब ,
क्या उसके हिस्से आया और क्या आया हिस्से मेरे ,
न मै ही किसी के आया कभी , न कोई काम मेरे
ख़त्म जिन्दगी के हो गए , य़ू ही रिश्ते तमाम मेरे
ख़त्म जिन्दगी के हो गए , य़ू ही रिश्ते तमाम मेरे
यादों में जिनको रक्खा है फूलों सा सहेज कर ,
फिर से उन्हें मिला दे मुझे , वो पुराने यार मेरे .
इस जिन्दगी में हो गए हैं मुझसे कई गुनाह ,
कुछ थी मेरी मजबूरियां , और कुछ अरमान थे मेरे ,
अब रहम कर तू इतना , है कलम में तेरी ताकत ,
इक नई तकदीर लिख दे , कर माफ़ गुनाह मेरे ,
रातों में जग जग के जिन सपनों को देखा ,
अब उनको हकीकत कर दे , रह हए जो ख़ाब मेरे .
मैं तो तलबगार था न रख सका हिसाब ,
क्या उसके हिस्से आया और क्या आया हिस्से मेरे ,
न मै ही किसी के आया कभी , न कोई काम मेरे
ख़त्म जिन्दगी के हो गए , य़ू ही रिश्ते तमाम मेरे
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