"Duaayen bahut see dee.n sabane magar
asar hone main hi zamaane lage."

Friday, October 29, 2010

KYA ZINDGI KE ISHARE HUE

ये ज़िन्दगी के क्या इशारे हुए, 
जो ज़ख्म फिर हरे हमारे हुए. 

सफ़र ए हस्ती दोबारा कैसे करें, 
हैं पैरहन दो ही उतारे हुए. 

जब भी घेरा हमें तूफ़ानों ने, 
जो यार थे सभी किनारे हुए. 

ग़िला किससे अब तुम्हारा करें, 
अब खुदा भी यहां तुम्हारे हुए. 

सबसे चेहरा हैं वो छिपाए फ़िरें, 
ज़िन्दगी से ही जो हैं हारे हुए. 

जैसे तैसे सफ़र ये कट ही गया, 
टूटे अरमानों से गुज़ारे हुए. 

ग़मज़दा सब मगर न मरता कोई, 
मर के ही ग़म जुदा ये सारे हुए. 

उनको कहते सुना रकीब से ये, 
हैं "अनाड़ी" ग़मों के मारे हुए.




ye zindagii ke kyaa ishaare hue, 
jo zakhm phir hare hamaare hue. 

safar e hastii dobaaraa kaise 
kare.n, hai.n pairahan do hii utaare hue. 

jab bhii gheraa hame.n toofaano.n ne, 
jo yaar the sabhii kinaare hue. 

Gilaa kisase ab tumhaaraa kare.n, 
ab khudaa bhii yahaa.n tumhaare hue. 

sabase cheharaa hai.n wo Chipaae fire.n, 
zindagii se hii jo hai.n haare hue. 

aise taise safar ye kaT hii gayaa, 
TooTe aramaano.n se guzaare hue. 

Gamazadaa sab magar n marataa koii, 
mar ke hii Gam judaa ye saare hue. 

unako kahate sunaa rakeeb se ye,
hai.n "anaa.Dii" Gamo.n ke maare hue. 

"Anaarhi" 3rd NOV.2010 

Wednesday, October 27, 2010

Zindgi

दूर मुझको बहारों से क्युं ला रही है ज़िन्दगी, 
किनारों से तूफ़ानों में ले जा रही है ज़िन्दगी. 

चलते चलते ये राहें इस कदर उलझ गईं, 
जंगल में कभी सेहरा में - चलवा रही है ज़िन्दगी. 

हाले दिल जो एक दिन पूछ बैठे चांद से, 
कहा उसने के चक्कर ज़मीं के - लगवा रही है ज़िन्दगी. 

आफ़ताब से कहा एक दिन तू भी अपनी कुछ सुना, 
बोला न जाने किस आग में- जला रही है ज़िन्दगी. 

सितारों ने रो रो के अपनी दासतां ये सुनाई, 
खिलवाड़ रोशनी से रोज़ - करवा रही है ज़िन्दगी 

ज़िन्दगी से अपनी कोई "अनाड़ी" ख़ुश नहीं
देखो ये कैसे सब को - रुला रही है ज़िन्दगी. 

"अनाड़ी" 20th Sept. 2010, 1030 hrs

Gar tu na khaak hota

Kuch uupar wale se. kuch uuper walon se ............ 

गर तू जमीं पे रहता न अम्बर के पास मिलता, 
घर मेरा फ़िर तेरे ही घर के पास मिलता. 

जो नहीं खता थी मेरी उसकी सज़ा भी सह ली, 
गर गुनाहगार होता पैगम्बर के पास मिलता, 

चल रख पास अपने तू मेहरबानीयां अपनी, 
गर तलबगार होता तेरे दर के पास मिलता, 

जितना आसां था कहना थीं उतनी ही मुश्किल राहें, 
गर सफ़र आसान होता समंदर के पास मिलता. 

खुदा नहीं है इन्सां जो कदर ए इन्सां समझे, 
गर मैं फ़कीर होता किसी मुज़्तर के पास मिलता. 

बंट गया शरीकों में ताउम्र कमाया जो तूने गर 
नाम कमाया होता तेरी कब्र के पास मिलता. 

"अनाड़ी" ये समझ ले तू लेट के कब्र में, 
गर तू न खाक होता दुआ ए असर के पास मिलता 

"Anaarhi" 20th Oct.2010

Fakhr hai meri ja ko

Aadharsh khan se laye.n hum????????? 

मिले जो हमको पुरखों से उन अदबों की रवानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

लगती रही है दाव पर हर युग में द्रोपदी,  
भगवान को आना पड़ता है जब लाज बचानी है.
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है.

राम राज में अग्नि परीक्षा सीताओं की होती रही, 
रघुकुल रीत विश्वास की हमको वही चलानी है. 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

जंग की खातिर जब धोखा हर किसी को जायज़ है, 
बालियों से तो हमें भी अपनी जान बचानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

करते रहे हैं गदर नासमझ आजादी के वास्ते, 
राय बहादुरी हमवतनों की जां पर पानी है 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

भगत सिंह आजाद की बातें ना छेड़ो तो अच्छा है, 
जो गुल कुरबान हैं वतनों पर वो मरते भरी जवानी हैं, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

काट के अंग अंग बांटा भाइयों ने ही मां को, 
ये गांधीयों जिन्नाओं की ही मेहरबानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को- के वो हिन्दोस्तानी है. 

हो गये आज़ाद अब बसाते हैं शहर नये, 
ठेकेदारी बस अपने भाइयों को दिलानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

अब चोर उच्चके राज करेंगे लोकतंत्र की आड़ में, 
इक दादा की मूरत भी चौराहे पे लगानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

देवों की इस धरती पर कीमत सिफ़र इंसान की, 
करके नये फ़साद खड़े दंगो की आग जलानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

रुतबा पैसे से मिलता है तहजीब से पेट नहीं भरता, 
काम बहुत अभी करने है नकली दूध बनानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

दुर्योधन शकुनी ने जूये से हासिल तख्तो ताज किये, 
हैं आज के भ्रष्टाचारी क्या - ये तो भरते पानी हैं,
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है. 

गुरु द्रोण की परंपरा तब से अब तक कायम है, 
एकलव्यों की गुरु दक्षिणा वही अंगूठा कुर्बानी है, 
फ़ख्र है मेरी जां को - के वो हिन्दोस्तानी है.

घर में भेदी था रावण के जयचंदो की भूमी है, 
फ़िजा ए तहज़ीब ए हिन्दोस्तां तो बहुत पुरानी है, 

"Anaarhi" 14 th Oct. 2010

Sunday, October 10, 2010

SARE BAZAAR KUCH NILAAM HUA

तू बता दे तेरा पता क्या है, 
कैसा दिखता है पहनता क्या है. 

हैं यहां पे क्यूं ये पैमाने, 
जो बताते नहीं ज़रा क्या है. 

यहां कैसे का कुछ सवाल नहीं, 
देखते सब हैं के मिला क्या है. 

तेरे चेहरे पे किसका चेहरा है, 
मेरे आस्तीं में ये छुपा क्या है. 

आज सर पे जो ताज रखता है, 
कल को देखेगा के हुआ क्या है. 

झूठ की इक दिवार रखता है, 
तेरे इमान में बचा क्या है. 

वो जमीं से फ़लक पे जा पहुंचा, 
मेरी नज़रों से ये गिरा क्या है. 

सरे बाज़ार कुछ निलाम हुआ, 
ये ना पूछो के ये बिका क्या है. 

सबको बस रोश्नी की है चाहत, 
जानता दिल ही है जला क्या है. 

जिनको मतलब नहीं ख्यालों से, 
क्या बताएं उन्हें कहा क्या है. 

दिले गुस्ताख है जुबां आतिश,
उस "अनाड़ी" का ये ब्यां क्या है.

US PAAR JA KE

रंगीनिया इधर की अगर हैं गुनाह उस पार जा के, 
सफरे दश्त को छोड़ो जी क्या करना है उस पार जा के. 

जैसी करनी वैसी भरनी तो रोज़ ए हश्र से डर कैसा, 
साकी वही पिला दे और जो पीना है उस पार जाके. 

इस आलम के आईने भी झूठे हैं इंसाँ की तरह, 
जालिम कितने स्याह दिल हैं देखना है उस पार जा के. 

उसके ज़ुल्म ओ सितम का मैं कह दूँगा इंसाफ़ हुआ, 
जुल्मी को मेरे कदमो पर गर आना है उस पार जा के, 

क्या हाले जाँ बताएँ हम इस तन को है आराम कहाँ, 
सफ़र यहाँ इक करना है इक करना है उस पार जा के. 

संग पे सर को पटके है बुतो पे झूठी तोहमत भी, 
शायद उस "अनाड़ी " को कुछ भरना है उस पार जा के.