"Duaayen bahut see dee.n sabane magar
asar hone main hi zamaane lage."

Monday, November 28, 2011

Log miltey hi nahin kyon


लोग मिलते ही नहीं क्यों दो मुलाकातों के बाद,
टूट जाते हैं सभी रिश्ते शुरूअातों के बाद.

कौन किससे है ख़फा कैसे बताएं ये तुम्हे,
वो भी है बेहाल यारो बदले हालातों के बाद.

खो गईं है रौनकें फ़ीका भी है अांगन मेरा,
चाँद अब घटने लगा है चाँदनी रातों के बाद.

बात करते तो हैं मिलते ही ज़माने की लेकिन,
एक भी मेरी नहीं करते वो सौ बातों के बाद.

ये उड़ी है जो शहर में मौत मेरी की ख़बर,
क्या सहर हो ही गई इतनी स्यारातों के बाद.

रूठ ना जाता ख़ुदा ग़र यूँ ज़रा सी बात पर,
कुछ गिले शिकवे भी कर लेते मुनाजातों के बाद.

हो चुकी है मात जो रोए अनाड़ी ज़ार ज़ार,
ख़तराए सैलाब है अश्कों की बरसातों के बाद.

अनाड़ी"
२३सितंबर २०११


log miltey hi nahiN kyoN do mulakatoN ke baad,
toot jate hain sabhi rishtey shuruaatoN ke baad.

kaun kissey hai khafaa kaise bataiN ye tumheiN,
wo bhi hain behaal yaaro badley halatoN ke baad.

kho gaeeN hain raunkeiN fikaa bhi hai aaNgan mera,
chaand ab ghatney laga hai chandni raatyoN ke baad.

baat kertey tau hain miltey hi zamaane ki lekin,
aik bhi meri nahiN kartey wo sau baatoN ke baad.

ye udhee hai jo shahar mein maut meri ki khabar,
kya sahar ho hii gaee itnee syaraatoN ke baad.

rooTh na jata khuda gar yooN zaraa sii baat par,
kuchh giley shikve bhi kar letey munajatoN ke baad.

ho chuki hai maat jo roye anaaDhi zaar zaar,
khatrae sailaab hai ashkoN ki barsaatoN ke baad.

AnaaDhi”
23rd September 2011

Mera Yaar mujhse barham

मिरा यार मुझसे बरहम कभी था ना है ना होगा ।
मुझे ये भरम ए जानम कभी था ना है ना होगा ।।

रहूँ मै सफ़र में हर पल लगे रुकना मौत मुझको ।
मुझे मंजिलो का मातम कभी था ना है ना होगा ।।
 
जहाँ दोस्ती के माने कोई पल बदल रहे हों ।
वहाँ एतबार कायम कभी था ना है ना होगा ।।
 
करूँ तर्क जाम ज़ाहिद तिरा एतबार क्या है ।
कोई कायदा मुसम्मम कभी था ना है ना होगा ।।
 
ये मुआफ़ी और सज़ाएं हो बली तभी सुहाँए,
किसी नांतवाँ में दम कभी था ना है ना होगा ।।
 
चाहे ख्वाहिशों के तारे रहे टूटते हमेशां,
मिरे चश्म का ये घर नम कभी था ना है ना होगा ।।
 
कहाँ दोस्ती वफ़ा को रहे ढूंढता अनाङी,
तिरे वास्ते ये आलम कभी था ना है ना होगा

AnaaDhi 7th October 2011

Butparasti ki tujhe...

बुतपरस्ती की तुझे देखा तो नीयत हो गई, 
दिल ये मंदिर हो गया तू उसमें मूरत हो गई.

इक तरफ़ तू जांने जाना इक तरफ़ मेरा ख़ुदा
एक आह और इक नज़र से ही इबादत हो गई.

तेरा जलवा तेरी बातें तेरे लब तेरी हँसीं,
इक जगह जब आ मिले समझो के जन्नत हो गई.

हम निकल तो आए थे उस ज़ुल्फो ख़म औ दाम से,
पर असीरी क्या करें इस दिल की आदत हो गई.
चल चलें अब सू ए मंज़िल रास्ते थकने लगे,
इन सितारों की भी देखो कैसी हालत हो गई.

दिल अनाङी कह रहा है पर मुझे लगता नहीं,
के जमीं और चँाद के मिलने की सूरत हो गई.

अनाङी"/१०/२०११

Teri Rehmat Meri Kismat...

तेरी रहमत मेरी किस्मत में अदावत हो गई,
मरने की फुर्सत नही ये जिस्त आफत हो गई.

सौ करें हम काम पर सारे हुनर बेकाम के,
अक्ल ही हर काम में अड़चन की सूरत हो गई.

दाढ़ी काली कर हुए हैं शेख़ जी जब से जवाँ,
हम ने छानी खाक वो बेकार मेहनत हो गई.

डाकुओं का हो गया जम्हूरियत में राज अब ,
देख उस कल्लू गिरहकट की कयादत हो गई,

मौज लेते घूमते कुत्ते गली के हैं यहाँ ,
नस्ल अच्छी हो तो जंजीर इनायत हो गई,

बन गए हुक्कामे आकिल अब अनाड़ी हैं यहाँ,
नौकरानी उन के महलों की लयाकत हो गई...

AnaaDhi...7th October 2011

Mere Seene main ye kya hai...

उन के सजदे में है सब कुछ ही इताअत* के सिवा, ...(* अराधना )
अौर खुदाई में भी सब एक इबाहत* के सिवा. ...(*=न्यायसंगत)


मुख्लिसी* नेकी ईमाँ अौर वफाई सब है,....(*=निश्छलता)
अादमी ज़र हैं सभी लेक असालत के सिवा.*....( अादमी तो सोने के हैं बस ख़रापन नहीं)

ज़र ज़मी हुस्नो जवाहर की तमन्ना है भ्रम,
दौलतें कम हैं सभी एक लयाकत* के सिवा. ..(*= योग्यता)


हादसे जान के साथी ही रहें तो बहतर,
रोज़ ही मौत मुक़र्रर* है क्यामत के सिवा. ..(*= निश्चित)


कोई ख़ुरशीद को मग़रिब से निकलते देखो,
जी हाँ बदला है यहाँ सब मिरी अादत के सिवा.


तेरी बातों में बता बू ए बगावत क्यों है,
क्या अनाड़ी तिरी गुफ़्तार इहानत* के सिवा. ..(*= अनादर)


मेरे सीने में ये क्या है जो धड़कता ही रहे,
कुछ नहीं अौर वो कहते हैं मोहब्बत के सिवा.....
कुछ नहीं अौर वो कहते हैं मोहब्बत के सिवा....


un ke sajde mein hai sab kuchh hi ita'att ke siva,
aur khudaai mein bhi sab ek ibaahatt ke siva.


mikhlisi neiki eemaaN aur wafaee sab hain,
aadmi zar hain yahaN leik asaalatt ke siva.


zar zami husno jwahar ki taman'na hai bhrm,
daultein kam hain sabhi ek lyakatt ke siva.


haadsey jaan ke saathi hi rahein to behtar,
roz hi maut mukr'rar hai kyamatt ke siva.


koee khursheed ko magrib se nikaltey dekho,
jee haN badlaa hai yahan sab miree aadat ke siva.


teri baatoN mein bataa boo e bgawat kyoN hai,
kya anaaDhi tiree guftaar ihanatt ke siva.


mere seeney mein ye kya hai jo dhadhakta hi rahey,
kuchh nahiN aur wo kehtey hain mohab'batt ke siva.....
kuchh nahin aur wo kehtey hain mohab;batt ke siva.....

"अनाड़ी"
२१ सितंबर २०११

Bah gaeeN ab ke baras...

बह गईं अब के बरस कई हस्तियाँ बरसात में,
मिट गए वो मिट गए जिन के निशाँ बरसात में.

उठ रही है गर्द देखो अाबे दरिया लाल है,
पल दो पल की देर है अाया तुफाँ बरसात में.

ए शजर तुझ पर नहीं क्यों फूल या पत्ता कोई,
अब परिंदो का कहाँ हो अाशियाँ बरसात में.

साथ चलता था जहाँ जब अासमां में था मिह्र,
हमसफ़र सब खो गए जाने कहाँ बरसात में.

ए इलाही देख ली तेरी यहाँ इन्साफियाँ,
इक तरफ़ सैलाब उस पे बिजलियाँ बरसात में.

इस बरस बरसात में पानी नहीं तेज़ाब है,
सब्ज़ कैसे ये रहेगा गुल्सितां बरसात में.

अा अनाड़ी बैठा है जो सब से ऊंची शाख़ पर,
उजड़ेगा अब ये चमन ए बागबाँ बरसात में.

AnaaDhi”
23rd september2011

Jab Tha bachpan...

जब था बच पन होती थीं सब मस्तियाँ बरसात में
चल ती थीं तब काग़जों की कश्तियाँ बरसात में

अौर लड़क पन में सभी बेफिक्र थे नादान थे
घूमती थीं ज़लज़लों की टोलियाँ बरसात में

फिर जवानी अा ग़ई था ठोकरों पे ये जहाँ
साथ ले के घूमते थे लड़कियाँ बरसात में

वक्त भी थम ने लगे जब चार बैठे यार हों
गूंजती थी कहकहों से बस्तियाँ बरसात में

कर के शादी वालिदैं पहना दी हम को बेड़ियाँ
गिर गईं अर्माने दिल पर बिजलियाँ बरसात में

अा गए बच्चे तो फिक्रे रोज़गारी हो गया
गीले हैं सब नून अाटा लकड़ियाँ बरसात में

रुख पे थी उम्रे रवानी दिल तो लेकिन था जवाँ
थाम कर दिल देखते थे तित्लियाँ बरसात में

अा के पीरी में हुअा अब्बा का देखो हाल ये
छुट गए मीना अो मय अौर अम्मियाँ बरसात में

उम्र बड़ती का ये घोड़ा गर अनाड़ी थाम ले
हर बरस चड़ता  रहे वो घोड़ीयाँ बरसात में

“AnaaDhi”
23rd September 2011

Monday, September 12, 2011

poochhoonga sab khuda se


अाँखों से कह लो बात जो लब से ब्याँ न हो,
ऐसा हो कब के अपने कोई दर्मियाँ न हो ।।

कोई नहीं है अाज तिरे मेरे दर्मियाँ,
अाता है खौफ़ ये भी कोई इम्तिहाँ न हो ।।

पूछूंगा सब खुदा से मैं अाँखों में अाँख डाल,
फैला ये मेरे सर पे अग़र अासमां न हो ।।

अब दर मिले या दार ये फर्दे अमल पे छोड़,
बे ख़ुद हुअा हूँ ए ख़ुदी मुझ पे अयाँ न हो ।।

हम भी गए थे सैर को उस खुल्द में कभी,
ऐसा नहीं अनाड़ी के कोई निशाँ न हो ।।


AankhoN se keh lo baat jo lab se byaN na ho,
aisa ho kab ke koee apne darmiyaN na ho.

koee nahin hai aaj tere mere darmiyaN,
aata hai khauf ye bhi koee imtihaaN na ho.

poochhoonga sab khuda se main aankon mein aankh daal,
faila ye mere sar pe agar aasmaaN na ho.

ab dar* mile ya daar* ye fard-e-amal* pe chhorh,
bekhud* huaa hooN aye khudee* mujhpe ayaN* na ho.

ham bhi gye the sair ko uss khuld* mein kabhi,
aisa nahiN AnaaDhi ke koee nishaN na ho...


* = (dar= darwaaza) ; (daar= fansi ka fanda) ; (fard-e-amal=gunahon ka lekha jokha)
(bekhud=unconsious) ; (Khudee= consiousness) ; (ayaN= prakat) ; (khuld=swarg)

"AnaaDhi"
10th Sept 2011

Tuesday, September 6, 2011

Naseebo ke jo naame hain


यहाँ सारे गदाई* के भरोसे जी रहे हैं, .......(* = भीख मांगना)
तभी तो मांग के साक़ी से मय ये पी रहे हैं ।

ये कहता था वो नामाबर* तु चाहे जो पता दे,...(*= डाकिया)

नसीबों के ये नामें* तो बेनामी* ही रहे है । ...... (*= चिट्ठी,   **= बिना पते के)

अग़रचे दाग़ चेहरे पे मग़र रुसवा* नहीं वो,.......(*= बदनाम)

उधारी चांदनी है चाँद पर नूरी* रहे हैं ।....*= रौशन)

है नकली वर्दीअां सारी जिन्हे पहने फिरो हो,

वही मलबूस* असली जो दिवाने सी रहे हैं ।........(*= लिबास)

बरस लाखों तिरे सजदे में सर मारा इलाही,

मिले जो चारे दिन वो भी तिरी मरज़ी रहे हैं ।

ये अौहदे अौर तम्ग़े अारजी* समझे अनाड़ी,........(*= बिना पैरों के)

इरादे सर हमारे तो बुलंदर्बी* रहे हैं । .......(*= उच्चदर्शी )

"AnaaDhi"
6th Sept 2011

Thursday, September 1, 2011

Mere Haath Khali Ye Jaan Kar

नहीं कुछ यहाँ ये फ़कीर सब चाहे लिख गए हैं दिवार पर,
तो भी चाहतों का ये हाल है चड़े चादरें हैं मज़ार पर.

अभी कल तलक कोहे नूर थे देखो मिट गये हैं निशान भी,
मेरे हाथ खाली ये जान करमिलें सब के ख़ाली क़ग़ार पर.

वो सितम ज़रीफ़ थी और मुझे लगी ज़िन्दगी भी अज़ीज़तर ,
बड़ी बदमिजाज़ ये मौत है - मैं लुटा इसी एतबार पर.

वे पुराने ज़ख्म तो भर गए मिटे उन के सगरे निशान भी ,
मेरे दोस्तों को ख़बर तो दो - रक्खे खंजरो को वो धार पर.

वो ख़लिश ही इतनी हसीन थी कि दिलओ जिग़र के थे होश गुम,
बे नक़ाब गुल जो देखता तो मैं मर मिटा ही था ख़ार पर.

लगीं ज़िन्दगी को जो ठोकरें तो हकीकतें हुईं रूबरू
मेरी हसरतें हैं खमोश सब ,हैं ख़ुमार सारे उतार पर.

लगे दाग़ कितने ही रूह को - रहे साफ़ कैसे ये पैरहन ,
कि लहू ही इसका इलाज है इसे धोना तुम कई बार पर

ये ग़ज़ल नहीं कोई ज़ुल्फ़े ख़म जो के हर अनाड़ी संवार ले,
न है ज्ञान इल्मे उरूज़ का हो सुख्नवरों में शुमार पर .

मिली जिन्दगी से जो नेंमतें था अनाड़ी क्या हक़दार तू,
ये जो कम समझ के दुखी सा है पाया तूने है बेशुमार पर.

"Anaarhi"
26th August 2011

Na hogi baat hanse zindgi ki

यहाँ  शायर सभी हैं आनर‌री से,
तेरी हर बात हो डिग्‌नीटरी से.

ये इन्गलिश के भला हैं क़ाफ़िए क्यों,
क्या ढूंढे हैं ये सारे डिक्शनरी से,

ग़ज़ल अच्छी हो मत उम्मीद रखियो,
पढ़े आगे नहीं हम प्राइमरी से.

हुअा करते थे एग्ज़ाम अैप्रल में,
पसीने छूटते  थे  जनवरी से.

ग़ज़ल मेरी है पुख्ता ये समझ लो,
अटैस्ट इसको कराया  नोटरी से.

हैं  सब हड़ताल पर शायर यहां के,
कोई झांके यहां ना बाउंड्री से.

ये मेरे देश की हालत है ऎसी ,
ये अब सुधरेगा प्यारे मिलटरी से.

न होगी बात हमसे ज़िन्दग़ी की,
अरे हम हैं अनाड़ी आर्डनरी से..........

"अनाड़ी"  
6th August 2011

HazaaroN saal Chalney ki saza Hai..

ज़रा मेरी भी सुन ले इल्तिज़ा है,
तिरा है फैसला तेरी रज़ा है.
zaraa merii bhi sun le iltiza hai,
tira hii faisla teri raza hai.

ज़मीं के क्यों क़मर* पीछे पड़ा है ?,.......(*= चाँद)
ये दिल का रोग जो तुझको लगा है.
jamii ke kyoN qamar peeche paDha hai,
ye dil ka rog jo tujh ko laga hai.

बड़ी स़गीं ख़ता तेरी तुझे अब,
हज़ारो साल चलने की सज़ा है.
baDii sangeeN khata terii tujhe ad,
hazaaro saal chalney ki saza hai.

जो आया है कहीं से कोई *पत्थर,......* = astroid
तु है मजनूं हुआ ये फ़ैसला है.
jo aaya hai kahin se koii pat'ther,
tu hai majnu huaa ye faisla hai.

है भटके दर बदर काहे को जाहिल,
हरम या दैर में रहता खुदा है..?
hai bhatke dar bdar kaahe ko jahil,
haram ya dair mein rahta khuda hai.?
(kya bhagwaan masjid aur mandir mein rehta hai.?)


हुआ अच्छा के मैं निकला अनाड़ी,
जिग़र के दाम से बेहतर क़ज़ा है...
hua ac'cha ke main nikla anaaDhi,
jigar ke daam se behtar qaza hai...

"AnaaDhi"
19th August 2011

( Sher No. 2--3- 4  ek hi khyal ki extension hain ...mila kar paDne ka anand lein.)

Ehtiyatan Shamaa Ham Jalaatey Rahe

गर्दिशों में भी जो झिलमिलाते रहे,
वो ज़माने को रस्ता दिखाते रहे.
GardishoN mein bhi jo jilmilaate rahe,
wo zamaane ko rasta dikhate rehe.

साथ साया सफ़र में हमेशां रहे,
एहतियातन शमा हम जलाते रहे.
saath saya safar mein hamesha rahe,
ehtiyatan shamaa ham jalaate rahe.

वक्त की थी कमी और मस्‌रूफ़ थे,
दर पे तेरे तो हम फ़िर भी आते रहे .
waqt ki thi kami aur masroof thhe,
dar pe tere to ham fir bhi aate rahe.

कह न पाए जो हम दिल की बातें तो क्या,
उन की हाँ में तो हाँ हम मिलाते रहे.
keh n paye jo ham dil ki baatein to kya,
un ki haaN mein to haaN ham milate rahe.


पीरे दौलत की फ़ोकी दलीलों पे भी,
क्यों ये अह्‌ले जहाँ सर हिलाते रहे
peer-e-daulat ki foki daleeloN pe bhi,
kyoN ye ahle jahaN sar hilate rahe.

एक बच्चे के सीधे सवालों पे क्यों,
देर तक सर अनाड़ी खुजाते रहे...
aik bach'che ke seedey sawaaloN pe kyuN,
deir tak sar anaaDhi khujate rahe.

"AnaaDhi....15th August 2011
दौलत आई    इक्राम आया,
कुर्सी आई     सलाम आया.

ताउम्र रही     जुस्तजू ही,
मौत आई       पैग़ाम आया.

वादों पर       ही कट गई,
घड़ी आई     अंजाम आया

 है फ़राग़त    ये  बेख़ुदी
अक्ळ आई    तो दाम आया.

इन्तज़ामे कुदरत   क्या कहने,
गर्मी आई        तो आम आया.

मैं ग़रीब     अब मारा गया,
सर्दी आई     ज़ुकाम आया.

आदम था     तभी निकला,
सज़ा आई   क़वाम *  आया
*= इंसाफ़

सबको पढ़कर    हमने जाना,
बह्‌र आई         क़लाम आया.

बैठा माँ के      कदमों में,
दुआ आई       मुक़ाम आया,

ठहर ज़रा     "अनाड़ी" अबतो,
गोर आई      बिश्राम आया.....

"अनाड़ी"
2nd August 2011

("सम्भलकर रहिएगा ज़रा इस आदम जात से,
है फ़ितनाग़र अनाड़ी ये न जाने कैसा कैसा.")

Hamko Jana HAi Kahan

हमको जाना है कहाँ ये पता तो हो,
वो ठिकाना है कहाँ ये पता तो हो.

मंजिलें अपनी करेंगे तय तभी,
उनको अाना है कहाँ ये पता तो हो।

देख लेते हैं वो जन्नत चल ज़रा,
वो विराना है कहाँ ये पता तो हो.

छोड़ देंगे ये जहाँ  तो हम  मग़र,
आबो दाना है कहाँ ये पता तो हो.

मैकदा दैरो हरम  और तू सनम,
सर झुकाना है कहाँ ये पता तो हो.

घर से निकलो तो अनाड़ी तुम ज़रा,
ये ज़माना है कहाँ ये पता तो हो........

hum ko jaana hai kahan ye pataa to ho,
wo thikaana hai kahan ye pataa to ho.

manzilein apni karenge tay tabhee,
unko aana hai kahan ye pataa to ho.

dekh letey hain wo jannat chal zaraa,
wo viraana hai kahan ye pataa to ho.

chhorh denge ye jahaaN tou ham magar,
aab o danaa hai kahan ye pata to ho.

maikadaa dair o haram aur tu sanam,
sar jhukanaa hai kahan ye pataa to ho.

ghar se niklo to anaaDhi tum zaraa,
ye zamanaa hai kahan ye pataa to ho...

"ANAA.DHI"
27th JULY   2011

Koi Batlaaye Zindgi Kya Hai..

आज के सूरते हालात पर कुछ प्रश्न हैं ..............

उन दरिन्दों की ये हसी क्या है,
तेरी इमाम* बेबसी क्या है.  
.....( * = नेता )

आ ख़ुदा तुझ से कुछ सवाल करूँ
तुझको बच्चों से कीमती क्या है.

तेरे बन्दे ही तेरे बन्दों की,
जान लेते हैं बंदगी क्या है.

ढेर बारूद के लगाते हैं वो,
इस से बढ़ के दरिंदगी क्या है.

नाम होने से पाक क्या होगा,
नहीं मतलब पाकीज़गी क्या है.

पाके वो पाक भी नापाक़ रहे,
पूछ लो अौर तिश्नगी* क्या है. 
.... ( * = प्यास )

हम अनाड़ी हुए यतीम के यूँ,
मौत भी आए तो बुरी क्या है.

इस चमन में चमन के फ़ूलों की,
कोई बतलाये ज़िन्दगी क्या है.
कोई बतलाये ज़िन्दगी क्या है.

...ब..ड़ा.ा.ा.ा.ा.ा.ा.ा.ा.ाम म म म म म .....
FINISH.......NEXT !!!!!!!!
"ANAA,DHI"
22nd July 2011

Monday, July 18, 2011

किस्मत हमारी वारी न्यारी हो रही है

किस्मत हमारी वारी न्यारी हो रही है,
तलब गुनाहों को हमारी हो रही है.

उस में हमारा भी सुना है नाम है,
फर्द अहलों की जो जारी हो रही है.

रंग गुलों का बू से पहले उड़ गया,
लूट लें गुलशन तैयारी हो रही है.

ये ख़बर बादल क्यों सुन बेचैन है,
चोरों की अब गिरफ़्तारी हो रही है.

जुगनू बोले चाँद से मत बात कर,
रोशनी तेरी उधारी हो रही है.

जब से सोचा ले उड़ू सूरज की आग,
वहाँ तभी से बर्फ़ बारी हो रही है.

तुम हो बुद्धु जब से उसने ये कहा,
शातिर अक्ल तब से अनाड़ी हो रही है.

कलम लगा कर कान में हो घूमते,
शेर लिखने की बिमारी हो रही है?

"अनाड़ी" 15th July 2011

आंसुओ के लफ़्ज सबके दिल की नज़र से पढ़िए


दिल तोड़ कर करो तुम इयादत* मेरी बला से, .
...... * ( मरीज़ का हाल पूछना)
चेहरे पे ओढ़ ली जो शराफ़त मेरी बला से,


चेहरों पे हमने चेहरे हैं उसपे नक़ाब देखे,
तेरी हर अदा में झलके ज़हानत* मेरी बला से. ........ *( अकलमंदी)

तेरी दाड़ी में ए ज़ाहिद* हैं ये तारें सीमो ज़र की**, ..........  *(विरक्त)   **( चांदी सोने की)
तेरी खुल गई दह्‌र* में असालत** मेरी बला से. .........  * (संसार)  **(असलियत)

उन फूलों के दिल से पूछो जिन्हें बागबाँ ने तोड़ा,
हो चमन की या सबा की मलामत* मेरी बला से.........   * (भर्त्सना, निंदा)

दिल और दिमाग़ में है बस फासला नज़र का,
दह्‌न* जिसको चाहे देवे  क़राबत** मेरी बला से.  ......... *(मुहँ)  **( नज़दीकी, नातेदारी)

आंसुओ के लफ़्ज सबके दिल की नज़र से पढ़िए,
दे हाथों में हाथ कहिए ये हालत मेरी बला से.

इतना नहीं है आसां के दूजे के दर्द जानो,
वो चेहरा घुमा के बोले ये अादत मेरी बला से.

उसे कर दूँ दिल हवाले इक उतरे कर्ज़ बाकी,
फ़िर चाहे फ़ूँक देना ये कामत* मेरी बला से.  ......... *(शरीर)

मेरी तरफ़ से देखें तो समझें वो सुख़न मेरा,
या अनाड़ी कह के मुझको दें लानत मेरी बला से..


"Anaa.Dhi"
11th July 2011

नक़ाब पोशों के शहर में

वो सैलाबे रुख़ो ताब पे नज़र रखते हैं
ख़ाक में रह के सितारों की ख़बर रखते हैं,

जो ज़ह्‌न में तो तराज़ू ए ज़र रखते हैं,
वो पहलू में बता किसके जिगर रखते हैं.

सुन के कहते हैं शेख जी दिल की यूँ ध‌ड़कन,
ऐसी बातों की न हम कोई फ़िकर रखते हैं...

फ़िर से घड़ दे ए खुदा टूटे कासा-ए-दिल को,
तू होगा रुसवा इसे फ़कीर अगर रखते हैं.

घर से हाथों को जोड़ कर निकलने वाले,
राम मुँह में छुरी बगल में  मगर रखते हैं.
 
सब से रखते हैं जो सब कुछ छिपा तिज़ोरी में,
जां तो रखते ही हैं वो दिल भी उधर रखते हैं..

नक़ाब पोशों के शहर में आइनों के सौदाग़र,  
चश्में तसव्वुर का कोई ख़ास हुनर रखते हैं........ (शायर लोग)
(चश्में तसव्वुर = कल्पना की आंख)

इस ज़माने में जो रहते हैं अनाड़ी बन कर,
अक्सर क़तरे में दरिया का असर रखते हैं.
"Anaa.Dhi"
3rd July 2011

अफ़सोस के वो मंज़िलें हम पा ही जाने वाले थे,

अफ़सोस के वो मंज़िलें हम पा ही जाने वाले थे,
रूठे सफर में एन वक्त जो साथ निभाने वाले थे.

अड़चने हैं खूब इस मकान की तामीर में,
खो ही गए वो नक्शे जिनपे घर बनाने वाले थे.

है दोस्ती की आस अब तो टूट ही चुकी मगर,
तेरी कसम वो आके हमसे हाथ मिलाने वाले थे.

उन से वफा का गो हमें यकीं कभी ना था मगर,
करते जो वादा उसको हम ताउम्र निभाने वाले थे.

वो अजनबी ही था कोई जो हाले दिल पे रो दिया,
अपने तो हम पे कल तलक तोहमत लगाने वाले थे.

मेरी तरफ से देखिए तो आसमां कुछ और है,
कोई और ही तुम तो खुदा तक्दीर लिखाने वाले थे.

इक नूर के गुमान में जो मुँह उठा के चल दिए,
अहबाब कहते हैं  के हम ठोकर खाने वाले थे.

यूँ ही फाँकते नहीं गर्द इस रहगुज़र की हम,
तूर पे पहूंचे थे जो वो इसी राह से जाने वाले थे.

अनाड़ी तेरी ये जिन्से दिल उधार ले हसीन लोग,
न मोल लगाने वाले थे न दाम चुकाने वाले थे.
"अनाड़ी" 
20th June 2011

Wednesday, June 29, 2011

Jo ho raha is shahar main


जो हो रहा इस शहर मे कई रोज़ से बदनाम है,
ए आइने मैं क्या करूँ मेरा हमशक्ल  हमनाम है.

फ़र्दे अमल को तू मेरी फिर से लिख ले ए खुदा,
तू उस में वो भी जोड़ ले जो चाहतों के नाम है.

बदली बदली सी लग रही है चाल आसमां तेरी,
बदल रही किस्मत मेरी या तुझको मुझसे काम है.

दिया है छोड़ मैने उसके दर को और दिवार को,
पर दिल में कायम अब तलक फिर भी एहतराम है.

मैं कोड़ियों के मोल हूँ इस आलमे बाज़ार में,
पर दिल की बात तू ना कर बेमोल और बेदाम है.

जो ज़ाहिर में तो है पिन्हाँ वो पिन्हाँ में ही है ज़ाहिर,
तो हासिले ये जुस्तजू अनाड़ी यही एलाम है.

jo ho raha iss shahar mein kaee roz se badnaam hai,
ay aainey main kya karoon mera hamshakl kamnaam hai.

fard-e-amal ko tu meri fir se likh le ay khuda,
tu uss mein wo bhi jorh le jo chahaton ke naam hai.

badli badli si lag rahi hai chaal aasmaN teri,
badal rahi kismat meri ya tujh ko mujhse kaam hai.

diya hai chhorh maine uske dar ko aur diwaar ko,
par dil mein kayam ab talak fir bhi ehtraam hai.

main kodiyon ke mol hooN iss aalm-e-bazaar mein,
par dil ki baat tu na kar bemol aur bedaam hai.

jo zahir mein to hai pinha wo pinha mein hi hai zahir,
to hasiley ye justju anaarhi yahi ailaam hai.....
(khoz se yahi naseehat mili  )

fard-e-amal = karmo ka lekha jokha,
ehtraam = izzat, aadar,
aalm-e-bazaar = bazaar roopi sansaar,
pinha = chhipa hua, hidden,
justju = Khojh,
ailaam = naseehat


"Anaarhi"
15th June 2011

Tuesday, June 7, 2011

ना अपना तमाशा बनाया करो,

न अपना तमाशा बनाया करो,
ग़मों को न सबको बताया करो.

नहीं झेल सकते अगर भार तुम,
तो मुद्दा न कोई  उठाया करो.


बुलाया है घर जो किसी को अगर,
तो दिल अपना पहले सजाया करो.

मुसाफिर सफ़र के यहां हैं सभी,
ये ग़म बे वज़ह ना मनाया करो.


हैं अपने मज़े मंज़िलों के मगर,
सफ़र के मज़े भी उठाया करो.


पता है अगर जो मराहल तुम्हें,
तो तारों को रस्ता दिखाया करो.
( मराहल =  destinations)

 
जो भी  दिल कहे बात उसकी सुनो,
यूँ  सीने में ना ध‌ ड़काया करो.


यहाँ तितलियां जामो साकी भी हैं,
  मैख़ाने में शामें बिताया करो.


बुरी चीज़ कहते हैं मय शेख जी,
न पीया करो ना पिलाया करो.

कहो जो भी तुम तौल कर ही कहो,
यूँ जी ना किसी का जलाया करो.

कोई पूछ ले रो रहे तुम हो क्यों,
न टूटा हुअा दिल दिखाया करो.


चलाकी भी थोड़ी ज़रूरी यहाँ,
अनाड़ी ही ना कहलाया करो.

na apna tamaasha banaaya karo,
gamoN ko n sabko bataaya karo.

nahin jheil saktey agar bhar tun,
to mud'da n koee uthaya karo.

bulaya hai ghar jo kisee ko agar,
to dil apna pehley sajaya karo.

musafir safar ke yahan hain sabhee,
ye gam bewazah na manaaya karo.

hain apne mazey manzilon ke magar,
safar ke mazey bhi uthaya karo.

pata hai agar jo maraahal tumhen,
to taaron ko rasta dikhaya karo.

 jo bhi dil kahe baat ushi suno,
yoon  seeney mein na dharkaya karo.

yhan titliyan jam-o-saaki bhi hain,
maikhane mein shamein bitaya karo.

buree cheez kehtey hain mae shekh ji,
n piyaa karo na pilaya karo.

koee poochh le ro rahe tum ho kyun,
n toota hua dil dilkhaya karo.

kaho jo bhi tum taul kar hi kaho,
yooN  jee na kisee ka dukhaya karo.

chlaaki bhi thodi zaroori yahan,
anaarhi hi na kehlaaya karo...

"Anaarhi"
7th June 2011

Sunday, June 5, 2011

ज़िन्दगी तुझसे क्या कहूँ

ज़िन्दगी तुझसे क्या कहूँ यही ख़्याल किया होता,
रोज़े हश्र लाचारी का खुदा से सवाल किया होता.
(रोज़े हश्र = फैसले के दिन)

ज़िक्रे जन्नते मौहूम गर ना था वाज़िब तो ना सही,
इस गर्दिशे अय्याम का कुछ तो मलाल किया होता.
(जन्नते मौहूम = भ्रामक स्वर्ग )(गर्दिशे अय्याम = सांसारिक चक्र)

तूर पे पहुचें फिर भी तुम बातों में मशगूल रहे,*
अनाड़ी ग़मे हस्ती का तभी उस‌से इब्दाल किया होता
(ग़मे हस्ती = जीवन के दुख:)
(इब्दाल = exchange)

ए बुत ख़ुदा बना कर के हमने तो तेरी इबादत की,
बन के ख़ुदा मगर तूने कोई तो कमाल किया होता.

साकी तेरी इनायत है काम में आई बेख़ुदी,
होश में होते तो जीना अक्ल ने मुहाल किया होता....."अनाड़ी"

* = तूर नामक पर्वत पे कहते हैं हज़रत मूसा ने खुदा से बातें की थीं

Thursday, May 19, 2011

मेरी सरकार ये धोखा.


दिल तो नादांन जो खाए है हर बार ही धोखा,
और उस पर ज़ुल्म ये के फ़ितरते यार है धोखा.

इन बहारों ने तो कई बार पुकारा मुझको ,
मगर हर बार दिया मेरे दिले बीमार ने धोखा.

क्यों अब तक होश बाकी है ये क्या इल्ज़ाम है तेरा,
खूँ नहीं मय है ये साकी मेरी सरकार ये धोखा.

उन को ख्वाबों में भी मैने बस परदे में देखा है,
मगर चर्चा है यारों में के है हुस्नार का धोखा.

था दावा तोड़ लाएंगे फ़लक से चांद और तारे,
ज़रा सी जान क्या मागीं खुला दिलदार का धोखा.

यकीं किस पे करे कोई सुबह ही शाम हो जाती,
सितमगर वो ही निकलेगा है जिस पे यार का धोखा.

बड़ी ज़ालिम ये दुनिया है बचा के खाल चलता हूँ,
अनाड़ी बन के देता हूँ मैं हर अय्यार को धोखा.


dil to nadaan hai ji khaye hai har baar hi dhokha,
aur us par sitam ye ke fitrate yaar hi dhokha.

in bahaaro ne to kaee baar pukaara mujhko,
magar har baar diya mere dile bimaar ne dhokha.

kyun ab tak hosh baaki hai ye kya ilzaam hai tera,
khooN naheen mai hai ye saaki meri sarkaar ye dhokha.


unko khabon mein bhi maine bas parde mein dekha hai,
magar charchaa hai yaaro mein k hai husnaar ka dhokha.

tha dawa torh laayenge falak se chaand aur taare,
zaraa si jaan kya maangi khulaa dildaar ka dhokha.

yakeen kis par kare koee subah hi shamm ho jaati,
sitamgar wo hi niklega hai jis par yaar ka dhokha.

badhi zalim ye duniya hai bachaa k khaal chalta hoon,
anaarhi ban k deta hoon mein har ayyaar ko dhokha.

(अय्यार= over clever)

“Anaarhi”
18th May 2011

ए ख़ाको आबो हवा की माया,


ए ख़ाको आबो हवा की माया,
तूने मुझको बहुत सताया,
थे  मेरे  कुछ और इरादे,
पर तूने कुछ और कराया--

ए ख़ाको आबो हवा की माया,
तूने मुझको बहुत सताया,

सफर ये रुकते चलते बीता,
चाक पैरहन जीवन रीता,*
चाहा देकर सब कुछ मैने,
प्याला पर लब तक न आया---

ए ख़ाको आबो हवा की माया,
तूने मुझको बहुत सताया,

मन में मेरे जो भी आया,
चेहरे ने कुछ और दिखाया,
कैसे देता कोई दिलासे,
गम भी पाएदार ना पाया--

ए ख़ाको आबो हवा की माया,
तूने मुझको बहुत सताया,

स्याही में क्या साये की हस्ती,
खाब की दिन में बसे ना बस्ती,
पहुँच पे अपनी रोना आया,
तूने जब जब चांद दिखाया--

ए ख़ाको आबो हवा की माया,
तूने मुझको बहुत सताया,

पल आया था निकल गया है,
दिन हाथों से फिसल गया है,
हां नां करते बरसों बीते,
अनाड़ी ने कुछ नहीं कमाया--

ए ख़ाको आबो हवा की माया,
तूने मुझको बहुत सताया,


* (फटे कपड़े   जीवन खाली/सुनसान  )

"Anaarhi"
13th May 2011

Na ab Bahaao isko ragoN mein

तमन्ना-ओ-अरमां और आरज़ू के हसीं सराबों में रह गया था,
पहुचना शायद वहीं था मुझको शुरू सफ़र को जहां किया था.
( सराबों= मिरीचिकाएं )

वही पुरानी ही दास्तां है तेरी कहानी मेरी कहानी,
मैं वो ही किरदार निभा रहा था किसी ने पहले निभा लिया था.

है गर्दिशों में ना जाने कब से मेहरबां जिन पे ये आसमां है,
बढ़ी बस उनसे फ़लक की रौनक जिन्हें सितारा बना दिया था.

जब तक चिरागों में थी शमां रौशन हो रहीं थीं सारी फ़िज़ाएं,
हवा ज़माने की क्या लगी के घर को ही उसने जला दिया था.

न अब बहाओ इसको रग़ों में है खूँ तुम्हारा पानी ही पानी,
इन्साफ की बस की थी ग़ुज़ारिश रंग इसने अपना दिखा दिया था.

जब से ज़माने ने नाअहल के सरों पे सेहरे सज़ा दिये थे,
ऐसी फ़िज़ा में तभी से मैंने तख्लुस अनाड़ी बना लिया था.

tamanna-o-armaa aur aarzoo ke haseeN saraaboN mein reh gya tha,
pahuchnaa shayad wahiN tha mujhko shuru safar ko jahaaN kiya tha.

wahee puraani hi daastaaN hai teri kahaani meri kahaani,
Main wo hi kirdaar nibhaa rahaa tha kisee ne pehle nibhaa liya tha.

hai gardishoN mein na jaane kab se meharbaaN jinpe ye aasmaaN hai,
barhee bas unse falak ki raunak jinheN sitaara banaa diyaa tha.

jab tak chiraagoN mein thi shamaa raushan ho rahiN thi saari fizayeN,
hawa zamaane ki kya lagee ke ghar ko hi usne jalaa diyaa tha.

na ab bahaao isko ragoN mein hai khooN tumhaara paani hi paani,
insaaf ki bas ki thi gizarish rang isne apnaa dilkaa diya tha.

jab se zamaane ne na-ahal ke saro pe sehrey sazaa diye the,
aisee fiza mein tabhi se maine takhal'lus anaarhi banaa liya tha.

(Na-ahal= non deserving)

"Anaarhi"
8th May 2011

Monday, May 2, 2011

Ghar to Khuda ka

खुल्द का वादा बड़ा दिलनशींन था,
जब तलक रहा भरम कायम यकीन था.
(Khuld = swarg)


किसको जन्नतों में यूं ढूंढते हो तुम,
घर तो खुदा का कब से ज़ेरे ज़मीन था.

आईनों से उठ चुका एतबार मेरा,
फर्क यूं तो अक्स में काफ़ी महीन था.

जीना मरना रात दिन एकही बात थी,
थी हक़ीक़त हसीं ना ही ख्वाब हसीन था.

बात उस की सुन के मैं हैरान रह गया,
वो मेरी उम्मीद से ज्यादा कमीन था.

क्या नीयत पे किसी की भरोसा करूं,
अपनी ही नीयत पे मुझे कब यक़ीन था.

बन के वो अनाड़ी दुआएं सब से ले गया,
बातों से ही लग रहा बंदा ज़हीन था..


Khuld ka waada badha dilnasheen tha,
jab talak rahaa bharm kaayam yakeen tha.
(Khuld = swarg)

kisko jannaton mein yoon dhoondhtey ho tum,
ghar to khudaa ka kab se zere zameen tha.

aaino se utth chukaa aitbaar meraa,
fark yoon to aks mein kaafee maheen tha.

jeena marna raat din ekhi baat thi,
thi haqeeqat haseeN na hi khwab haseen tha.

baat us ki sun k mein hairaan reh gyaa,
wo meri ummeed se jyada kameen tha.

kya niyat pe kisee ki bharosa karoon,
apnee hi niyat pe mujhe kab yaqeen tha.

ban k wo anaarhi duaayen sab se le gya,
baaton se hi lag rahaa banda zaheen tha.


"Anaarhi"

26th April 2011

Sunday, April 17, 2011

Bahut rona apni soorat pe

बहुत रोना अपनी सूरत पे आया मुझको,
अक्स मेरे ने जब आइना दिखाया मुझको.

देखो नादान फिर तार-ए-नफ़स से उलझा,
उखड़ी साँसों ने दिल का हाल सुनाया मुझको.

गाँठ हाथों से जो लगेगी दांतों से ही खुलेगी,
पाठ ज़िन्दगी ने इक यही पड़ाया मुझको.

बागे आलम की हकीकत पीरे गुलशन क्या है,
तेरी बातों ने ये कल रात बताया मुझको.

रूहे बेचैन का इलज़ाम जहां पर क्यों हो,
अपनी ही अंजुमन में चैन न आया मुझको.

नाखुदा बहरे जहां में हो अनाड़ी बेहतर,
साथ फरज़ान का कब रास है आया मुझको.



bahut rona apni soorat pe aaya mujhko,
aks mere ne jab aaina dikhaya mujhko.

dekho nadaan fir taar-e-nafas se uljhaa,
ukhdee saanson ne dil ka haal bataaya mujhko.

gaanth haathon se jo lagegi daanton se hi khulegi,
paath zindgi ne ik yahi padaayaa mujhko.

baag-e-aalam ki haqeekat peer-e-gulshan kya hai,
teri baaton ne ye kal raat bataaya mujhko.

rooh-e-bechain ka ilzaam jahaan par kyon ho,
apni hi anjuman mein chain na aaya mujhko.

nakhuda behrejahan mein ho anaarhi behtar,
saath farzaan ka kab raas hai aaya mujhko.



baag-e-aalam --- duniya roopi bageecha.
peer-e-gulshan---- baag ka buzurg, malik,
nakhuda ---- naavik, majhee
behrejahan ----- duniya roopi samandar,
farzaan ---- hunarmand, akalmand 



"Anaarhi"  17th April 2011

Aashiyan ko hamne jo dekha jalaker

नूर था आलम में निराला उसका,
कम रहा
घर ही में उजाला उसका.

 सूरज ने समझा कोहेनूर खुद को,
ये भ्रम रातों ने निकाला उसका.

आशियाँ को हमने जो देखा जलाकर,
रौशनी रंग धुयाँ सब काला उसका.

है तेरी जुबां के भरोसे वो नादां,
अब कुछ भला न होने वाला उसका.


रहे कैसे गैरत से मुफलिस अनाड़ी,
 है सब की नज़र में निवाला उसका. 

noor tha aalam mein niraala uskaa,
kam raha ghar hi mein ujaala uskaa.


sooraj ne samjha koh-e-noor khud ko,
ye bhrm raaton ne nikaala uskaa.


aashiyan ko hamne jo dekha jalakar,
roshni rang dhuyan sab kalaa uskaa.


hai teri zubaaN ke bharosey wo nadaaN,
ab kuchh bhalaa na hone walaa uskaa.


rahe kaise gairat se muflis anaarhi,
hai sab ki nazar mein niwaala uslaa.


"Anaarhi" 10th April 2011