"Duaayen bahut see dee.n sabane magar
asar hone main hi zamaane lage."

Monday, September 12, 2011

poochhoonga sab khuda se


अाँखों से कह लो बात जो लब से ब्याँ न हो,
ऐसा हो कब के अपने कोई दर्मियाँ न हो ।।

कोई नहीं है अाज तिरे मेरे दर्मियाँ,
अाता है खौफ़ ये भी कोई इम्तिहाँ न हो ।।

पूछूंगा सब खुदा से मैं अाँखों में अाँख डाल,
फैला ये मेरे सर पे अग़र अासमां न हो ।।

अब दर मिले या दार ये फर्दे अमल पे छोड़,
बे ख़ुद हुअा हूँ ए ख़ुदी मुझ पे अयाँ न हो ।।

हम भी गए थे सैर को उस खुल्द में कभी,
ऐसा नहीं अनाड़ी के कोई निशाँ न हो ।।


AankhoN se keh lo baat jo lab se byaN na ho,
aisa ho kab ke koee apne darmiyaN na ho.

koee nahin hai aaj tere mere darmiyaN,
aata hai khauf ye bhi koee imtihaaN na ho.

poochhoonga sab khuda se main aankon mein aankh daal,
faila ye mere sar pe agar aasmaaN na ho.

ab dar* mile ya daar* ye fard-e-amal* pe chhorh,
bekhud* huaa hooN aye khudee* mujhpe ayaN* na ho.

ham bhi gye the sair ko uss khuld* mein kabhi,
aisa nahiN AnaaDhi ke koee nishaN na ho...


* = (dar= darwaaza) ; (daar= fansi ka fanda) ; (fard-e-amal=gunahon ka lekha jokha)
(bekhud=unconsious) ; (Khudee= consiousness) ; (ayaN= prakat) ; (khuld=swarg)

"AnaaDhi"
10th Sept 2011

Tuesday, September 6, 2011

Naseebo ke jo naame hain


यहाँ सारे गदाई* के भरोसे जी रहे हैं, .......(* = भीख मांगना)
तभी तो मांग के साक़ी से मय ये पी रहे हैं ।

ये कहता था वो नामाबर* तु चाहे जो पता दे,...(*= डाकिया)

नसीबों के ये नामें* तो बेनामी* ही रहे है । ...... (*= चिट्ठी,   **= बिना पते के)

अग़रचे दाग़ चेहरे पे मग़र रुसवा* नहीं वो,.......(*= बदनाम)

उधारी चांदनी है चाँद पर नूरी* रहे हैं ।....*= रौशन)

है नकली वर्दीअां सारी जिन्हे पहने फिरो हो,

वही मलबूस* असली जो दिवाने सी रहे हैं ।........(*= लिबास)

बरस लाखों तिरे सजदे में सर मारा इलाही,

मिले जो चारे दिन वो भी तिरी मरज़ी रहे हैं ।

ये अौहदे अौर तम्ग़े अारजी* समझे अनाड़ी,........(*= बिना पैरों के)

इरादे सर हमारे तो बुलंदर्बी* रहे हैं । .......(*= उच्चदर्शी )

"AnaaDhi"
6th Sept 2011

Thursday, September 1, 2011

Mere Haath Khali Ye Jaan Kar

नहीं कुछ यहाँ ये फ़कीर सब चाहे लिख गए हैं दिवार पर,
तो भी चाहतों का ये हाल है चड़े चादरें हैं मज़ार पर.

अभी कल तलक कोहे नूर थे देखो मिट गये हैं निशान भी,
मेरे हाथ खाली ये जान करमिलें सब के ख़ाली क़ग़ार पर.

वो सितम ज़रीफ़ थी और मुझे लगी ज़िन्दगी भी अज़ीज़तर ,
बड़ी बदमिजाज़ ये मौत है - मैं लुटा इसी एतबार पर.

वे पुराने ज़ख्म तो भर गए मिटे उन के सगरे निशान भी ,
मेरे दोस्तों को ख़बर तो दो - रक्खे खंजरो को वो धार पर.

वो ख़लिश ही इतनी हसीन थी कि दिलओ जिग़र के थे होश गुम,
बे नक़ाब गुल जो देखता तो मैं मर मिटा ही था ख़ार पर.

लगीं ज़िन्दगी को जो ठोकरें तो हकीकतें हुईं रूबरू
मेरी हसरतें हैं खमोश सब ,हैं ख़ुमार सारे उतार पर.

लगे दाग़ कितने ही रूह को - रहे साफ़ कैसे ये पैरहन ,
कि लहू ही इसका इलाज है इसे धोना तुम कई बार पर

ये ग़ज़ल नहीं कोई ज़ुल्फ़े ख़म जो के हर अनाड़ी संवार ले,
न है ज्ञान इल्मे उरूज़ का हो सुख्नवरों में शुमार पर .

मिली जिन्दगी से जो नेंमतें था अनाड़ी क्या हक़दार तू,
ये जो कम समझ के दुखी सा है पाया तूने है बेशुमार पर.

"Anaarhi"
26th August 2011

Na hogi baat hanse zindgi ki

यहाँ  शायर सभी हैं आनर‌री से,
तेरी हर बात हो डिग्‌नीटरी से.

ये इन्गलिश के भला हैं क़ाफ़िए क्यों,
क्या ढूंढे हैं ये सारे डिक्शनरी से,

ग़ज़ल अच्छी हो मत उम्मीद रखियो,
पढ़े आगे नहीं हम प्राइमरी से.

हुअा करते थे एग्ज़ाम अैप्रल में,
पसीने छूटते  थे  जनवरी से.

ग़ज़ल मेरी है पुख्ता ये समझ लो,
अटैस्ट इसको कराया  नोटरी से.

हैं  सब हड़ताल पर शायर यहां के,
कोई झांके यहां ना बाउंड्री से.

ये मेरे देश की हालत है ऎसी ,
ये अब सुधरेगा प्यारे मिलटरी से.

न होगी बात हमसे ज़िन्दग़ी की,
अरे हम हैं अनाड़ी आर्डनरी से..........

"अनाड़ी"  
6th August 2011

HazaaroN saal Chalney ki saza Hai..

ज़रा मेरी भी सुन ले इल्तिज़ा है,
तिरा है फैसला तेरी रज़ा है.
zaraa merii bhi sun le iltiza hai,
tira hii faisla teri raza hai.

ज़मीं के क्यों क़मर* पीछे पड़ा है ?,.......(*= चाँद)
ये दिल का रोग जो तुझको लगा है.
jamii ke kyoN qamar peeche paDha hai,
ye dil ka rog jo tujh ko laga hai.

बड़ी स़गीं ख़ता तेरी तुझे अब,
हज़ारो साल चलने की सज़ा है.
baDii sangeeN khata terii tujhe ad,
hazaaro saal chalney ki saza hai.

जो आया है कहीं से कोई *पत्थर,......* = astroid
तु है मजनूं हुआ ये फ़ैसला है.
jo aaya hai kahin se koii pat'ther,
tu hai majnu huaa ye faisla hai.

है भटके दर बदर काहे को जाहिल,
हरम या दैर में रहता खुदा है..?
hai bhatke dar bdar kaahe ko jahil,
haram ya dair mein rahta khuda hai.?
(kya bhagwaan masjid aur mandir mein rehta hai.?)


हुआ अच्छा के मैं निकला अनाड़ी,
जिग़र के दाम से बेहतर क़ज़ा है...
hua ac'cha ke main nikla anaaDhi,
jigar ke daam se behtar qaza hai...

"AnaaDhi"
19th August 2011

( Sher No. 2--3- 4  ek hi khyal ki extension hain ...mila kar paDne ka anand lein.)

Ehtiyatan Shamaa Ham Jalaatey Rahe

गर्दिशों में भी जो झिलमिलाते रहे,
वो ज़माने को रस्ता दिखाते रहे.
GardishoN mein bhi jo jilmilaate rahe,
wo zamaane ko rasta dikhate rehe.

साथ साया सफ़र में हमेशां रहे,
एहतियातन शमा हम जलाते रहे.
saath saya safar mein hamesha rahe,
ehtiyatan shamaa ham jalaate rahe.

वक्त की थी कमी और मस्‌रूफ़ थे,
दर पे तेरे तो हम फ़िर भी आते रहे .
waqt ki thi kami aur masroof thhe,
dar pe tere to ham fir bhi aate rahe.

कह न पाए जो हम दिल की बातें तो क्या,
उन की हाँ में तो हाँ हम मिलाते रहे.
keh n paye jo ham dil ki baatein to kya,
un ki haaN mein to haaN ham milate rahe.


पीरे दौलत की फ़ोकी दलीलों पे भी,
क्यों ये अह्‌ले जहाँ सर हिलाते रहे
peer-e-daulat ki foki daleeloN pe bhi,
kyoN ye ahle jahaN sar hilate rahe.

एक बच्चे के सीधे सवालों पे क्यों,
देर तक सर अनाड़ी खुजाते रहे...
aik bach'che ke seedey sawaaloN pe kyuN,
deir tak sar anaaDhi khujate rahe.

"AnaaDhi....15th August 2011
दौलत आई    इक्राम आया,
कुर्सी आई     सलाम आया.

ताउम्र रही     जुस्तजू ही,
मौत आई       पैग़ाम आया.

वादों पर       ही कट गई,
घड़ी आई     अंजाम आया

 है फ़राग़त    ये  बेख़ुदी
अक्ळ आई    तो दाम आया.

इन्तज़ामे कुदरत   क्या कहने,
गर्मी आई        तो आम आया.

मैं ग़रीब     अब मारा गया,
सर्दी आई     ज़ुकाम आया.

आदम था     तभी निकला,
सज़ा आई   क़वाम *  आया
*= इंसाफ़

सबको पढ़कर    हमने जाना,
बह्‌र आई         क़लाम आया.

बैठा माँ के      कदमों में,
दुआ आई       मुक़ाम आया,

ठहर ज़रा     "अनाड़ी" अबतो,
गोर आई      बिश्राम आया.....

"अनाड़ी"
2nd August 2011

("सम्भलकर रहिएगा ज़रा इस आदम जात से,
है फ़ितनाग़र अनाड़ी ये न जाने कैसा कैसा.")

Hamko Jana HAi Kahan

हमको जाना है कहाँ ये पता तो हो,
वो ठिकाना है कहाँ ये पता तो हो.

मंजिलें अपनी करेंगे तय तभी,
उनको अाना है कहाँ ये पता तो हो।

देख लेते हैं वो जन्नत चल ज़रा,
वो विराना है कहाँ ये पता तो हो.

छोड़ देंगे ये जहाँ  तो हम  मग़र,
आबो दाना है कहाँ ये पता तो हो.

मैकदा दैरो हरम  और तू सनम,
सर झुकाना है कहाँ ये पता तो हो.

घर से निकलो तो अनाड़ी तुम ज़रा,
ये ज़माना है कहाँ ये पता तो हो........

hum ko jaana hai kahan ye pataa to ho,
wo thikaana hai kahan ye pataa to ho.

manzilein apni karenge tay tabhee,
unko aana hai kahan ye pataa to ho.

dekh letey hain wo jannat chal zaraa,
wo viraana hai kahan ye pataa to ho.

chhorh denge ye jahaaN tou ham magar,
aab o danaa hai kahan ye pata to ho.

maikadaa dair o haram aur tu sanam,
sar jhukanaa hai kahan ye pataa to ho.

ghar se niklo to anaaDhi tum zaraa,
ye zamanaa hai kahan ye pataa to ho...

"ANAA.DHI"
27th JULY   2011

Koi Batlaaye Zindgi Kya Hai..

आज के सूरते हालात पर कुछ प्रश्न हैं ..............

उन दरिन्दों की ये हसी क्या है,
तेरी इमाम* बेबसी क्या है.  
.....( * = नेता )

आ ख़ुदा तुझ से कुछ सवाल करूँ
तुझको बच्चों से कीमती क्या है.

तेरे बन्दे ही तेरे बन्दों की,
जान लेते हैं बंदगी क्या है.

ढेर बारूद के लगाते हैं वो,
इस से बढ़ के दरिंदगी क्या है.

नाम होने से पाक क्या होगा,
नहीं मतलब पाकीज़गी क्या है.

पाके वो पाक भी नापाक़ रहे,
पूछ लो अौर तिश्नगी* क्या है. 
.... ( * = प्यास )

हम अनाड़ी हुए यतीम के यूँ,
मौत भी आए तो बुरी क्या है.

इस चमन में चमन के फ़ूलों की,
कोई बतलाये ज़िन्दगी क्या है.
कोई बतलाये ज़िन्दगी क्या है.

...ब..ड़ा.ा.ा.ा.ा.ा.ा.ा.ा.ाम म म म म म .....
FINISH.......NEXT !!!!!!!!
"ANAA,DHI"
22nd July 2011