दौलत आई इक्राम आया,
कुर्सी आई सलाम आया.
ताउम्र रही जुस्तजू ही,
मौत आई पैग़ाम आया.
वादों पर ही कट गई,
घड़ी आई अंजाम आया
है फ़राग़त ये बेख़ुदी
अक्ळ आई तो दाम आया.
इन्तज़ामे कुदरत क्या कहने,
गर्मी आई तो आम आया.
मैं ग़रीब अब मारा गया,
सर्दी आई ज़ुकाम आया.
आदम था तभी निकला,
सज़ा आई क़वाम * आया
*= इंसाफ़
सबको पढ़कर हमने जाना,
बह्र आई क़लाम आया.
बैठा माँ के कदमों में,
दुआ आई मुक़ाम आया,
ठहर ज़रा "अनाड़ी" अबतो,
गोर आई बिश्राम आया.....
"अनाड़ी"
2nd August 2011
("सम्भलकर रहिएगा ज़रा इस आदम जात से,
है फ़ितनाग़र अनाड़ी ये न जाने कैसा कैसा.")
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