"Duaayen bahut see dee.n sabane magar
asar hone main hi zamaane lage."

Monday, July 18, 2011

किस्मत हमारी वारी न्यारी हो रही है

किस्मत हमारी वारी न्यारी हो रही है,
तलब गुनाहों को हमारी हो रही है.

उस में हमारा भी सुना है नाम है,
फर्द अहलों की जो जारी हो रही है.

रंग गुलों का बू से पहले उड़ गया,
लूट लें गुलशन तैयारी हो रही है.

ये ख़बर बादल क्यों सुन बेचैन है,
चोरों की अब गिरफ़्तारी हो रही है.

जुगनू बोले चाँद से मत बात कर,
रोशनी तेरी उधारी हो रही है.

जब से सोचा ले उड़ू सूरज की आग,
वहाँ तभी से बर्फ़ बारी हो रही है.

तुम हो बुद्धु जब से उसने ये कहा,
शातिर अक्ल तब से अनाड़ी हो रही है.

कलम लगा कर कान में हो घूमते,
शेर लिखने की बिमारी हो रही है?

"अनाड़ी" 15th July 2011

आंसुओ के लफ़्ज सबके दिल की नज़र से पढ़िए


दिल तोड़ कर करो तुम इयादत* मेरी बला से, .
...... * ( मरीज़ का हाल पूछना)
चेहरे पे ओढ़ ली जो शराफ़त मेरी बला से,


चेहरों पे हमने चेहरे हैं उसपे नक़ाब देखे,
तेरी हर अदा में झलके ज़हानत* मेरी बला से. ........ *( अकलमंदी)

तेरी दाड़ी में ए ज़ाहिद* हैं ये तारें सीमो ज़र की**, ..........  *(विरक्त)   **( चांदी सोने की)
तेरी खुल गई दह्‌र* में असालत** मेरी बला से. .........  * (संसार)  **(असलियत)

उन फूलों के दिल से पूछो जिन्हें बागबाँ ने तोड़ा,
हो चमन की या सबा की मलामत* मेरी बला से.........   * (भर्त्सना, निंदा)

दिल और दिमाग़ में है बस फासला नज़र का,
दह्‌न* जिसको चाहे देवे  क़राबत** मेरी बला से.  ......... *(मुहँ)  **( नज़दीकी, नातेदारी)

आंसुओ के लफ़्ज सबके दिल की नज़र से पढ़िए,
दे हाथों में हाथ कहिए ये हालत मेरी बला से.

इतना नहीं है आसां के दूजे के दर्द जानो,
वो चेहरा घुमा के बोले ये अादत मेरी बला से.

उसे कर दूँ दिल हवाले इक उतरे कर्ज़ बाकी,
फ़िर चाहे फ़ूँक देना ये कामत* मेरी बला से.  ......... *(शरीर)

मेरी तरफ़ से देखें तो समझें वो सुख़न मेरा,
या अनाड़ी कह के मुझको दें लानत मेरी बला से..


"Anaa.Dhi"
11th July 2011

नक़ाब पोशों के शहर में

वो सैलाबे रुख़ो ताब पे नज़र रखते हैं
ख़ाक में रह के सितारों की ख़बर रखते हैं,

जो ज़ह्‌न में तो तराज़ू ए ज़र रखते हैं,
वो पहलू में बता किसके जिगर रखते हैं.

सुन के कहते हैं शेख जी दिल की यूँ ध‌ड़कन,
ऐसी बातों की न हम कोई फ़िकर रखते हैं...

फ़िर से घड़ दे ए खुदा टूटे कासा-ए-दिल को,
तू होगा रुसवा इसे फ़कीर अगर रखते हैं.

घर से हाथों को जोड़ कर निकलने वाले,
राम मुँह में छुरी बगल में  मगर रखते हैं.
 
सब से रखते हैं जो सब कुछ छिपा तिज़ोरी में,
जां तो रखते ही हैं वो दिल भी उधर रखते हैं..

नक़ाब पोशों के शहर में आइनों के सौदाग़र,  
चश्में तसव्वुर का कोई ख़ास हुनर रखते हैं........ (शायर लोग)
(चश्में तसव्वुर = कल्पना की आंख)

इस ज़माने में जो रहते हैं अनाड़ी बन कर,
अक्सर क़तरे में दरिया का असर रखते हैं.
"Anaa.Dhi"
3rd July 2011

अफ़सोस के वो मंज़िलें हम पा ही जाने वाले थे,

अफ़सोस के वो मंज़िलें हम पा ही जाने वाले थे,
रूठे सफर में एन वक्त जो साथ निभाने वाले थे.

अड़चने हैं खूब इस मकान की तामीर में,
खो ही गए वो नक्शे जिनपे घर बनाने वाले थे.

है दोस्ती की आस अब तो टूट ही चुकी मगर,
तेरी कसम वो आके हमसे हाथ मिलाने वाले थे.

उन से वफा का गो हमें यकीं कभी ना था मगर,
करते जो वादा उसको हम ताउम्र निभाने वाले थे.

वो अजनबी ही था कोई जो हाले दिल पे रो दिया,
अपने तो हम पे कल तलक तोहमत लगाने वाले थे.

मेरी तरफ से देखिए तो आसमां कुछ और है,
कोई और ही तुम तो खुदा तक्दीर लिखाने वाले थे.

इक नूर के गुमान में जो मुँह उठा के चल दिए,
अहबाब कहते हैं  के हम ठोकर खाने वाले थे.

यूँ ही फाँकते नहीं गर्द इस रहगुज़र की हम,
तूर पे पहूंचे थे जो वो इसी राह से जाने वाले थे.

अनाड़ी तेरी ये जिन्से दिल उधार ले हसीन लोग,
न मोल लगाने वाले थे न दाम चुकाने वाले थे.
"अनाड़ी" 
20th June 2011