"Duaayen bahut see dee.n sabane magar
asar hone main hi zamaane lage."

Monday, July 18, 2011

अफ़सोस के वो मंज़िलें हम पा ही जाने वाले थे,

अफ़सोस के वो मंज़िलें हम पा ही जाने वाले थे,
रूठे सफर में एन वक्त जो साथ निभाने वाले थे.

अड़चने हैं खूब इस मकान की तामीर में,
खो ही गए वो नक्शे जिनपे घर बनाने वाले थे.

है दोस्ती की आस अब तो टूट ही चुकी मगर,
तेरी कसम वो आके हमसे हाथ मिलाने वाले थे.

उन से वफा का गो हमें यकीं कभी ना था मगर,
करते जो वादा उसको हम ताउम्र निभाने वाले थे.

वो अजनबी ही था कोई जो हाले दिल पे रो दिया,
अपने तो हम पे कल तलक तोहमत लगाने वाले थे.

मेरी तरफ से देखिए तो आसमां कुछ और है,
कोई और ही तुम तो खुदा तक्दीर लिखाने वाले थे.

इक नूर के गुमान में जो मुँह उठा के चल दिए,
अहबाब कहते हैं  के हम ठोकर खाने वाले थे.

यूँ ही फाँकते नहीं गर्द इस रहगुज़र की हम,
तूर पे पहूंचे थे जो वो इसी राह से जाने वाले थे.

अनाड़ी तेरी ये जिन्से दिल उधार ले हसीन लोग,
न मोल लगाने वाले थे न दाम चुकाने वाले थे.
"अनाड़ी" 
20th June 2011

No comments:

Post a Comment