"Duaayen bahut see dee.n sabane magar
asar hone main hi zamaane lage."

Wednesday, September 15, 2010

Rauz youn hi

रोज़ यूं ही कतरा कतरा कर बह गया ,
लहू रग़ों का मेरी आंख का पानी बन के.

खुली आंख से भी ना संभला, वो ख्वाब बिखर गया,
है यादों में मेरी, बचपन की कहानी बन के.

मैं किस ओर देखूं - कहां ढूंढा करूं उसको,
मेरा था कभी - अब चला गया जवानी बन के.

ऐसी कौन सी रग है बाकी- जो दुखती नहीं,
न छेड़ इनको तू अब- रुत सुहानी बन के.

तू वही है - हूं मै भी वही हमसाया तेरा,
फिर मिले क्युं ए ज़िन्दगी-रोज़ बेगानी बन के.

मत देख यूं पहले से ही हूं ज़ख्मी बहुत,
जो मर गया तो रुह भटकेगी - दीवानी बन के.

"Anaarhi"

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