ये बंद होते दरवाज़े सब- इक यही इशारा करते हैं
बस्ती में वीराना-ए-हस्ती है - कहीं और बसारा करते हैं
दर्द मिला न टीस उठी न दिल को ही कोई घाव लगा,
इक बार में हासिल कुछ न हुआ - ये सफ़र दोबारा करतें हैं.
छोड़ दे इस महफ़िल को अब- इतना भी इसपे भरम न रख,
कदर दान ये यार नहीं - ना ही मान तुम्हारा करते हैं.
समझ के आब-ए-गुनाह जिसे - हम छोड़ आए मयखानें में,
पी पी के उसे सब काफिर यार- सेहत दो चारा करते हैं.
इस दैर-औ-हरम में घूंम के - अब तक जन्म गंवा दिया,
मैकदे में जाके शेख जी चलो बाकी गुजारा करते हैं.
तकदीर के टूटे बरतन में - जो डालूं सो बह जाता है,
देख तारों की ओर हम - क्या रोज़ निहार करते हैं.
ए कायनात के रहनुमां - तेरी फिरका परस्ती ज़ाहिर है,
तू उनको ही सब देता है - जो पाप हज़ारा करते हैं.
दुनियां में ग़ौर से देखें तो - मन मौज जुगाड़ी करता है,
"आनाड़ी" लोग जो होते हैं - मन मार गुज़ारा करते हैं.
"अनाड़ी"
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