"Duaayen bahut see dee.n sabane magar
asar hone main hi zamaane lage."

Saturday, September 25, 2010

mitti ki aukaat

कौन कहां पर जा पहुंचे - ये खेल हैं सब हयात के,
सितारों का क्या वज़ूद अपना - हैं मोहताज़ अन्धेरी रात के.

गर्द भी वक्त की आंधी से - उफ़्क के रंग बदल देती,
हवाओं में उड़ते शौले हैं - दिखलाते रंग निशात के.

आतिशे खुर्शीद की शै पाकर - पानी भी चर्ख पे जा चड़ता,
जब गर्मी हद से बढ़ जाती - आ जाते दिन बरसात के.

जरा सी हवा के झौंके से - खाक सरों पर उड़ती है,
तलवों के नीचे रहती जो - हर दम सारी जमात के.

दुनिया ने वाह वाह कर के - शरारे अन्जुंम बन डाले,
फिर ठोकरें खाते फिरते हैं - वो टूटन पर ज़ज़्बात के,

इन्सां को खुदा बनाये- वक्त - बनाये रंक को राजा,
मिट्टी की औकात हवाले - बस हवा और आबे हयात के,

बिन डोर के ये पुतली - छम छम नाचे फिरती है,
नफ़स टूटे जूं हुबाब*"अनाड़ी" - फिर अफ़साने रह जाएं जात के

 * Jub saans bulbuley ki tareh tootegi

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