गर तू जमीं पे रहता न अम्बर के पास मिलता,
घर मेरा फ़िर तेरे ही घर के पास मिलता.
जो नहीं खता थी मेरी उसकी सज़ा भी सह ली,
गर गुनाहगार होता पैगम्बर के पास मिलता,
चल रख पास अपने तू मेहरबानीयां अपनी,
गर तलबगार होता तेरे दर के पास मिलता,
जितना आसां था कहना थीं उतनी ही मुश्किल राहें,
गर सफ़र आसान होता समंदर के पास मिलता.
खुदा नहीं है इन्सां जो कदर ए इन्सां समझे,
गर मैं फ़कीर होता किसी मुज़्तर के पास मिलता.
बंट गया शरीकों में ताउम्र कमाया जो तूने गर
नाम कमाया होता तेरी कब्र के पास मिलता.
"अनाड़ी" ये समझ ले तू लेट के कब्र में,
गर तू न खाक होता दुआ ए असर के पास मिलता
"Anaarhi" 20th Oct.2010
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