"Duaayen bahut see dee.n sabane magar
asar hone main hi zamaane lage."

Wednesday, October 27, 2010

Zindgi

दूर मुझको बहारों से क्युं ला रही है ज़िन्दगी, 
किनारों से तूफ़ानों में ले जा रही है ज़िन्दगी. 

चलते चलते ये राहें इस कदर उलझ गईं, 
जंगल में कभी सेहरा में - चलवा रही है ज़िन्दगी. 

हाले दिल जो एक दिन पूछ बैठे चांद से, 
कहा उसने के चक्कर ज़मीं के - लगवा रही है ज़िन्दगी. 

आफ़ताब से कहा एक दिन तू भी अपनी कुछ सुना, 
बोला न जाने किस आग में- जला रही है ज़िन्दगी. 

सितारों ने रो रो के अपनी दासतां ये सुनाई, 
खिलवाड़ रोशनी से रोज़ - करवा रही है ज़िन्दगी 

ज़िन्दगी से अपनी कोई "अनाड़ी" ख़ुश नहीं
देखो ये कैसे सब को - रुला रही है ज़िन्दगी. 

"अनाड़ी" 20th Sept. 2010, 1030 hrs

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