"Duaayen bahut see dee.n sabane magar
asar hone main hi zamaane lage."

Thursday, September 1, 2011

Mere Haath Khali Ye Jaan Kar

नहीं कुछ यहाँ ये फ़कीर सब चाहे लिख गए हैं दिवार पर,
तो भी चाहतों का ये हाल है चड़े चादरें हैं मज़ार पर.

अभी कल तलक कोहे नूर थे देखो मिट गये हैं निशान भी,
मेरे हाथ खाली ये जान करमिलें सब के ख़ाली क़ग़ार पर.

वो सितम ज़रीफ़ थी और मुझे लगी ज़िन्दगी भी अज़ीज़तर ,
बड़ी बदमिजाज़ ये मौत है - मैं लुटा इसी एतबार पर.

वे पुराने ज़ख्म तो भर गए मिटे उन के सगरे निशान भी ,
मेरे दोस्तों को ख़बर तो दो - रक्खे खंजरो को वो धार पर.

वो ख़लिश ही इतनी हसीन थी कि दिलओ जिग़र के थे होश गुम,
बे नक़ाब गुल जो देखता तो मैं मर मिटा ही था ख़ार पर.

लगीं ज़िन्दगी को जो ठोकरें तो हकीकतें हुईं रूबरू
मेरी हसरतें हैं खमोश सब ,हैं ख़ुमार सारे उतार पर.

लगे दाग़ कितने ही रूह को - रहे साफ़ कैसे ये पैरहन ,
कि लहू ही इसका इलाज है इसे धोना तुम कई बार पर

ये ग़ज़ल नहीं कोई ज़ुल्फ़े ख़म जो के हर अनाड़ी संवार ले,
न है ज्ञान इल्मे उरूज़ का हो सुख्नवरों में शुमार पर .

मिली जिन्दगी से जो नेंमतें था अनाड़ी क्या हक़दार तू,
ये जो कम समझ के दुखी सा है पाया तूने है बेशुमार पर.

"Anaarhi"
26th August 2011

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