यहाँ सारे गदाई* के भरोसे जी रहे हैं, .......(* = भीख मांगना)
तभी तो मांग के साक़ी से मय ये पी रहे हैं ।
ये कहता था वो नामाबर* तु चाहे जो पता दे,...(*= डाकिया)
नसीबों के ये नामें* तो बेनामी* ही रहे है । ...... (*= चिट्ठी, **= बिना पते के)
अग़रचे दाग़ चेहरे पे मग़र रुसवा* नहीं वो,.......(*= बदनाम)
उधारी चांदनी है चाँद पर नूरी* रहे हैं ।....*= रौशन)
है नकली वर्दीअां सारी जिन्हे पहने फिरो हो,
वही मलबूस* असली जो दिवाने सी रहे हैं ।........(*= लिबास)
बरस लाखों तिरे सजदे में सर मारा इलाही,
मिले जो चारे दिन वो भी तिरी मरज़ी रहे हैं ।
ये अौहदे अौर तम्ग़े अारजी* समझे अनाड़ी,........(*= बिना पैरों के)
इरादे सर हमारे तो बुलंदर्बी* रहे हैं । .......(*= उच्चदर्शी )
"AnaaDhi"
6th Sept 2011
Bhai Jaan
ReplyDeleteहै नकली वर्दीअां सारी जिन्हे पहने फिरो हो,
वही मलबूस* असली जो दिवाने सी रहे हैं
Behtariin...Lajawab...Daad kabool karen...
Neeraj
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