दिल ये मंदिर हो गया तू उसमें मूरत हो गई.
इक तरफ़
तू जांने जाना इक तरफ़ मेरा
ख़ुदा
एक आह और
इक नज़र से ही इबादत हो गई.
तेरा जलवा
तेरी बातें तेरे लब तेरी हँसीं,
इक जगह जब
आ मिले समझो के जन्नत हो गई.
हम निकल
तो आए थे उस ज़ुल्फो ख़म औ दाम
से,
पर असीरी
क्या करें इस दिल की आदत हो
गई.
चल चलें
अब सू ए मंज़िल रास्ते थकने
लगे,
इन सितारों
की भी देखो कैसी हालत हो गई.
दिल अनाङी
कह रहा है पर मुझे लगता नहीं,
के जमीं
और चँाद के मिलने की सूरत हो
गई.
“अनाङी" ४/१०/२०११
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