जब था बच पन होती थीं सब मस्तियाँ बरसात में
चल ती थीं तब काग़जों की कश्तियाँ बरसात में
अौर लड़क पन में सभी बेफिक्र थे नादान थे
घूमती थीं ज़लज़लों की टोलियाँ बरसात में
फिर जवानी अा ग़ई था ठोकरों पे ये जहाँ
साथ ले के घूमते थे लड़कियाँ बरसात में
वक्त भी थम ने लगे जब चार बैठे यार हों
गूंजती थी कहकहों से बस्तियाँ बरसात में
कर के शादी वालिदैं पहना दी हम को बेड़ियाँ
गिर गईं अर्माने दिल पर बिजलियाँ बरसात में
अा गए बच्चे तो फिक्रे रोज़गारी हो गया
गीले हैं सब नून अाटा लकड़ियाँ बरसात में
रुख पे थी उम्रे रवानी दिल तो लेकिन था जवाँ
थाम कर दिल देखते थे तित्लियाँ बरसात में
अा के पीरी में हुअा अब्बा का देखो हाल ये
छुट गए मीना अो मय अौर अम्मियाँ बरसात में
उम्र बड़ती का ये घोड़ा गर अनाड़ी थाम ले
हर बरस चड़ता रहे वो घोड़ीयाँ बरसात में
“AnaaDhi”
23rd September 2011
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