इक चाह थी दिल की के तू कर आशिकी
हर फन मे माहिर तू हर दम निकला
कटारे चश्म से यूँ काटा जिगर को
खूं बहुत निकला पर जरा कम निकला .
इन्तजारे जान में थी यूँ जान अटकी
ये हुआ दीदार और वो दम निकला .
बहुत देर उलझे उस जुल्फों सितम में
किये जतन लाख पर वो ख़म न निकला .
चर्चे बहुत थे जिस बला के शहर में
वो हूर ए हुस्न तो मेरा सनम निकला
जो किया ये वादा के तुझी पे मरेंगे
फिर जनाजा हमारा दम बदम निकला
नहीं बस की आशिकी तेरे "अनाढ़ी "
इस हुनर में तू बहुत कम निकला .
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