अपने आगमन पर विशेष
ये जूठ और कपट की काया ,
लेकर तू दुनिया में आया .
जब तन से तुने मोह लगाया ,
मन पे पर गयी धन की छाया. ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
ये भरकता लहू धधकती जवानी ,
इसने किसी की एक न मानी ,
अब ठहर जरा के भुढ़ापा आया
सोच जरा अब तक क्या पाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
होती थी जब ज्ञान की बरखा ,
तूने बर्तन उल्टा रक्खा ,
जान लेने से ज्ञान न आया
क्यों गर्मी में प्यासा तरसाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
बचपन बीता आई जवानी ,
जवानी भी हो गई कहानी ,
जिस रूप की थी दुनिया दीवानी ,
उस मिटटी ने क्या रंग दिखाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
देख जरा तू पीछे मुढ़ के ,
संगी कहाँ रह गए bhichar के ,
दूर दूर तक नहीं दिखता साया ,
क्या चाहा था और क्या पाया . ये जूठ और कपट की काया , लेकर तू दुनिया में आया .
होने को है अब तू पचासी (50),
पौनी कट गई , बची जरा सी ,
कर मौज , "अनाढ़ी" छोढ़ उदासी ,
फिर मत कहना के वक़्त नहीं आया ,
ये दिन यही संदेसा लाया ,
है सुंदर उपहार ये कोमल काया ,
तू सुख "पावन" संसार में आया .
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