ये ऊँची ऊँची बातें , ढोल ये दरिया दिली का ,
आदमी को कुछ न समझना , फलसफा हर आदमी का ,
तू क्या है बतला जरा , मैं कौन हूँ समझा दूंगा ,
आदमी आदमी अलग अलग , अलग पैमाना मापने का.
तन का उजला दिखता सबको , मन की मैल कोई न देखे ,
हर चीज यहाँ पे बिकती यार , जा पता लगा कीमत का ,
उल्टी बात कबीर की ये दुनिया न मानी ,
ले "अनाढ़ी" अब सुन तू , ये दोहा असली का ,
भला न dhudhan मैं चला , जग भलों से खली होई ,
जब मुह खोलूं तो कहूँ , मुझ से भला न कोई .
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