मैं गाता जब भी राग "मैं ",
सुर पंचम सदा लगाता हूँ .
कुछ काम नहीं मैं काज का ,
और महल हवाई बनता हूँ .
किश्त साइकिल की अभी बाकी है ,
पर गीत कार के गाता हूँ .
मैं गाता जब भी राग "मैं ", सुर पंचम सदा लगाता हूँ .
आस पास कोई दूर निकट हो ,
सबको नीचा दिखलाता हूँ .
हल विरल हो या सरल हो ,
हर समस्या विकट बतलाता हूँ .
चाहे कोई कुछ भी बोले ,
बस अपनी चलवाता हूँ .
मैं गाता जब भी राग "मैं ", सुर पंचम सदा लगाता हूँ .
तू क्या है ? तू कुछ भी नहीं ,
ये बात सदा समझाता हूँ .
मैं वो हूँ जो कोई नहीं ,
यही दावा ठुक्वाता हूँ .
लिखूं "अनाढ़ी " पर हूँ खिलाढ़ी ,
ख़म ठोक के मैं बतलाता हूँ .
मैं गाता जब भी राग "मैं ",
सुर पंचम सदा लगाता हूँ .
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