न मै ही किसी के आया कभी , न कोई काम मेरे
ख़त्म जिन्दगी के हो गए , य़ू ही रिश्ते तमाम मेरे
यादों में जिनको रक्खा है फूलों सा सहेज कर ,
फिर से उन्हें मिला दे मुझे , वो पुराने यार मेरे .
इस जिन्दगी में हो गए हैं मुझसे कई गुनाह ,
कुछ थी मेरी मजबूरियां , और कुछ अरमान थे मेरे ,
अब रहम कर तू इतना , है कलम में तेरी ताकत ,
इक नई तकदीर लिख दे , कर माफ़ गुनाह मेरे ,
रातों में जग जग के जिन सपनों को देखा ,
अब उनको हकीकत कर दे , रह हए जो ख़ाब मेरे .
मैं तो तलबगार था न रख सका हिसाब ,
क्या उसके हिस्से आया और क्या आया हिस्से मेरे ,
न मै ही किसी के आया कभी , न कोई काम मेरे
ख़त्म जिन्दगी के हो गए , य़ू ही रिश्ते तमाम मेरे
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